Madhu's world: 2011/01 - 2011/02 l

1/10/2011

हमारा घर

कभी

हमारा घर

वो एक

छोटा सा कमरा था ,

हमारा ,तुम्हारा ,

छोटा इतना कि

आते जाते ,

हम तुम टकरा जाते थे,

और फिर कभी मुस्करा उठते थे,

कभी झुंझला उठते थे

और कभी

बाँध लेते थे ,

एक दूसरे को अपनी बाहों में ,

ये कह कर ...

"अब बताओ "

रात को,

दिन का कमरा

सोने का कमरा बन जाता था,

मैं ,

इधर उधर बिखरी तुम्हारी किताबें ,

पसरे हुए कपडे,

चाय के इकठ्ठे किये कप,

फैला हुआ अखबार

संभालती ,

तुम को मीठी मीठी डांट पिलाती,

उस कमरे में सोने का आयोजन करती ,

थकी सी ,

निंदासी सी,

सिमिट जाती थी तुम्हारी बाहों में,

और

भूल जाती थी दुनिया जहान को,

सुनते थे हम दोनों एक दूसरे की

साँसों को ,

हर करवट की आवाज

बहुत अपनी सी थी ,

और हम सोते हुए

बड़े घर का सपना देखते थे ,

मैं अपनी पूजा प्रार्थना में

ईश्वर से बड़ा घर,

हमारा घर मांगती थी

क्योंकि

वो कमरा बहुत छोटा था ,

लेकिन ना जाने क्यों

तब भी वो

घर सा लगता था

और फिर

एक दिन

मिला बड़ा घर भी

हमारा तुम्हारा घर ,

सुन्दर सजा हुआ ,

ढेर से कमरे

बड़ा सा आँगन

पर ना जाने क्यों

मुझे आज तक

ये घर ,

कभी घर सा नहीं लगता है ,

बिखरे हैं हम सब इस में ,

अपने अपने कमरे में ,

अपनी अपनी दुनिया में खोय

,नहीं टकराते एक दूसरे से अब ,

हाँ ,

टकराते है दरवाजों से ,

उन बंद दरवाजों से

जिन्हें खटखटाना पड़ता है

एक दुसरे से मिलने ले लिए

नहीं गूंजती अब वो खिखिलाहट

वो हंसी

बड़े घर में

बड़े लोगों जैसा चलन ,

धीमे से ,आहिस्ता से

चलना, बात करना हँसना ,

आभिजात्यपूर्ण

उफ़ ! मेरा दम घुटता है

सुनो!

एक बात कहूं ?

क्या हम वापिस

उस एक कमरे के घर में

नहीं जा सकते ,

सच में

मेरा यहाँ दम घुटता है

मैं जीना चाहती हूँ

सिर्फ जिंदगी नहीं

मैं तुम्हें जीना चाहती हूँ

तुम से टकरा कर ,

तुम्हारी साँसों से अपनी साँसों का

समन्वय मिला कर ,

उस छोटे से घर के

बड़प्पन को जीना चाहती हूँ

बड़े घर का ये बौनापन ,

मुझे लील रहा है

तिल तिल कर के

हर दिन ..

हर पल ........मधु

एक गीत "मारीशस माँ तेरी जय"

मारीशस माँ तेरी जय ..तेरी जय हो , जननी ,जन्मभूमि माँ तेरी जय तेरी जय हो
पूर्वजों का संकल्प पूरा हुआ ईश , घर घर में मंगल ध्वनी और उमंग हो
मारीशस माँ तेरी जय .......................................................................................
नीला है अम्बर नीला है सागर , सागर तले ये चौरंगा उजागर
सारे जहाँ में बस इस का नमन हो मारीशस माँ तेरी जय तेरी जय हो
मारीशस माँ तेरी जय ..................................................................................
सागर किनारे ज्यों सोना है बिखरा ,चंदा है चांदी की थाली सा पसरा ,
देवता भी तरसें कैसे यहाँ जन्म हो ,मारीशस माँ तेरी जय तेरी जय हो ,
मारीशस माँ तेरी जय .............................................................................
पूर्वजों के संकल्प ने दिन ये दिखाया ,भारत से बाहर लघु भारत बसाया ,
पूर्वजो हमारे ! तुम्हारी भी जय हो ,मारीशस माँ तेरी जय तेरी जय हो
मारीशस माँ तेरी जय ........................................................................
तोड़े थे तुमने पत्थर वो बन गए हैं हीरे , उन्ही हीरों से आज हमने देश सजाया ,
इन हीरों में चाँद और सूरज की चमक हो , मारीशस माँ तेरी जय तेरी जय हो
मारीशस माँ तेरी जय.....................................................................
शिवसागर रामगुलाम जो पिता था हमारा ,बन गया है आकाश का वो ध्रुव तारा ,
और स्वर्ग से जैसे बरसाता वो आशीर्वाद हो , मारीशस माँ तेरी जय तेरी जय हो
मारीशस माँ तेरी जय .............................................................................
मारीशस माँ तेरी जय ..तेरी जय हो , जननी ,जन्मभूमि माँ तेरी जय तेरी जय हो
पूर्वजों का संकल्प पूरा हुआ ईश , घर घर में मंगल ध्वनी और उमंग हो

मेरी सोच से उभरे ...मेरे कुछ अशआर ........

मेरी सोच से उभरे ...मेरे कुछ अशआर ........


1- उस की ताकत पर इतना ऐतबार था मुझे ,

कि मैं टूट गयी, बिखर गयी मुझे एहसास न था





2..उस की रहमत ,उस के करम का था असर इतना ,

कि मैं धूल थी फिर भी पहाड़ पर जा पहुची |....मधु





3..पकी फसल को धर के चिन्गारिओं के बीच ,

तुम मुझ से मेरे हश्र का हाल पूछते हो....मधु..



4..शाम तो हर मानिंद ढल जाती है ढल ही जायेगी..



इन्तजार तो सुबह का जान लेवा है ...मधु



5.. बिखरना तो जिंदगी में लाजिम है एक दिन ,

बिखरे जो गुलाब की मानिंद तो खुशबुओं में सिमटे रहोगे ....मधु



6… गुरूर का पहन लबादा,मैं निकला था खुदा को ढूँढने

न उसने मुझे को पहचाना ...न मैंने उस को पहचाना ...मधु



7.. जन्नत होती है..कहाँ होती है.. कैसी होती है किसे मालूम

दोजख का नज़ारा तो इस दुनिया में बहुत देखा है ...मधु



8.. औरत के दम से है कायनात लोग यूँ कहते तो है फिर भी

इस कायनात में औरत का वजूद तक बर्दाश्त नहीं ....मधु '



9.. मैं पूछती तो हूँ तुझ से पर जवाब के लिए नहीं,

क्यों बनायीं तूने दुनिया, अब क्यों मिटा रहा है ...मधु



10.. नक़्शे कदम पर चलने की हसरत तो है हमको ,

पर वक्त की ये हवा तो निशां ही मिटाए जाती है....मधु



11.. मेरे ख्वाब की ताबीर हो ये ख्वाब तो नहीं है मेरा,

मेरे ख्वाबों की दुनिया में मुझे बस रहने दे मालिक ...मधु



12.. ना उम्मीदी के अंधेरों से घबरा मत ऐ दिल,

उम्मीदों की हवाएं भी चिराग बुझा देती हैं ....मधु



13… ता उम्र दुआओं का असर कुछ इस तरह रहा ,

ना धूप में झुलसे और ना बारिश में भीगे हम ....मधु



14.. एक वक्त गुजर जाता है और एक वक्त नहीं गुजरता,

तुम नाहक परेशां हो ये तो वक्त का अपना तकाजा है ....मधु





15.. जिस की इबादत में बनाये हैं मंदिर मस्जिद तूने,

वो खुदा तो बरसों से मेरे दिल में रहा करता है ....मधु



16.. वो रास्ते जो मुझ को तुम तक पहुचाने वाले थे ,

उ न रास्तों ने अब अपना रास्ता ही बदल दिया है ....मधु



17.. बारहा मुझे औरत के किरदार (चरित्र ) पर हैरानी हुई है ,

खुद को मिटाने वाले हाथों को सहलाने में लगी है ....मधु



18.. ख़्वाबों का क्या है बंद आँखों में उतर ही आते है ,

खुली आँखों से देखे ख्वाब की ताबीर गजब होती है......मधु



19.. लिए मन्नतों का टोकरा मैं निकली थी अपने घर से ,

तेरे दर तक आते आते या खुदा ! न मन्नत रही न मैं....मधु



20.. सुबह की किरण का देवनहार अगर तू है ,

तो रात की स्याही का खुदा क्या कोई और है ?....मधु



21.. डूब जाना ही गर इश्क की तहजीब हैं तो या रब !

तू मुझे डूबने में लुत्फ़ की तौफिक फरमा दे....मधु



22.. वक्त ,हालात सोच और ख्वाइश सब उस की रजा पर कायम है,

मैं ,मैंने और मेरा का जूनून तो हमारा अपना जूनून है ....मधु



23.. सुबह का उजियारा दबे पाँव जमी पर उतर आया तो है,

गयी रात के अंधियारे का खौफ अभी तक हावी है .....मधु



24… जिन्दगी यूं तो कोई बात कभी तुझ से छिपाई नहीं मैंने ,

हाँ एक राज है मेरा कि मैं अब तुझ से ऊब सा गया हूँ ....मधु



25..आज उम्मीद ने मेरी, बाह थाम कर कहा मुझसे ,

याद रख दुनिया में नाउम्मीद कुछ भी नहीं है ....मधु



26.. ये किन की तोहमतों से घबरा के तूने सर झुका लिया बन्दे,

वो जिन के अपने सिरों पर तोहमतों की पगड़ियाँ बंधी है ...मधु



27.. बारहा दिल के दरवाजों से मैंने अपनी यादों को बाहर फेंका तो है ,

अपनी ही कमजोरी से उन्हें फिर से वापिस उठा लाती हूँ मैं ....मधु



28.. इस नयी बदलती दुनिया में नयी तहजीब के साथ चलने के लिए ,

मुश्किल कुछ भी नहीं है बस ईमान का गहना ही बेचना होगा ...मधु



29… आज बर्बादी के हालात से गुजरते बहुत बार मैंने सोचा है

काश रोक लिया होता मैंने वक्त के बदलते रुख को ....मधु



30.. उस की बेगुनाही का सबूत उस के आंसुओं में ना ढूंढ ,

तेरी आँख के आंसू ही उस की बेगुनाही बयां करते हैं .......मधु



31.. बहुत आसां है किसी और के बारे में गुफ्तगू करना ,

आसां नहीं मगर खुद को खुद के तराजू में तोलना ....मधु



32.. वक्त की ये गुजारिश है की जो गुजर जाए उसे भुला डालो ,

मुझे ये तो बता ऐ वक्त ! तू क्यों जख्म दिए जाता है फिर ....मधु



33.. वो एक छोटी सी बात थी , दिल में आई और कह दी तुम से ,

जानती तो मैं भी थी की बातों के ही अफ़साने बना करते है ....मधु



34… इस पत्थर दिल दुनिया से बे-आबरू होकर, ये ख़याल आया है

काश या तो हम ना होते या ना होते ये जज्बात हमारे....मधु





35.. ये सच है मालिक की मैं तेरी इबादत पर खरी नहीं उतरती ,

तू बस एक नज़र इंसानियत से मेरी मुहब्बत तो देख.....मधु



36.. तेरी रहमतों के सदके मुझे बस इतना बता दे मालिक,

कहाँ छुपाया है चैन तूने.. और किस के लिए छुपाया है ....मधु



37.. मेरी रौशनी पर इतना ऐतबार करने वाले,

तेरा भरम बनाये रखने को मैं दिन रात जल रही हूँ.....मधु



38.. वो कुछ बात ही रही होगी जो मुड मुड कर उसने देखा वर्ना ,

यूं रुकना,यूं मुड़ना यूं देखना उस की आदत में तो शुमार न था ....मधु



39.. दर्द रिश्तों के टूटने का नहीं है, उन्हें तो टूटना ही था ,

दर्द तो ये है की कितनी बेदर्दी से तोडा उसने ....मधु



40.. मौला तेरी इबादद से रूहानी सुकून तो मिल जाता है मगर,

फकत रूहानी सुकून से तेरी दुनियां में काम नहीं चलता ....मधु





41.. एक आवाज सी आती है दूर से ,जैसे तू बुला रहा है मुझे ,

मैं पागल से भटकती कभी मंदिर में जाती हूँ कभी मस्जिद में जाती हूँ...मधु



42.. तन्हाई कि आदत ने हमें कुछ इस कदर बिगाड़ दिया है ,

कि अब अपनी ही साँसों की आवाज हमसे सहन नहीं होती ....मधु



43… चैन की नींद तो मैं सो जाऊं कोई बड़ी बात नहीं है ,
मौला !तू मेरे अपनों के सब दुःख तो मिटा दे पहले ....मधु

ग़ज़ल "एक दीपावली ऐसी भी ........."

एक दीपावली ऐसी भी .........


लकीरों पर थमी जिंदगी को हम बदलें तो कुछ बात बने ,

जो जम से गए हैं अहसास,वो कभी पिघलें तो कुछ बात बने





अमावस की रात को जैसे चीर करजैसे उतर आती है दिवाली

कुछ ऐसे ही हम चीर डालें मन का अँधेरा तो कुछ बात बने |



इतने हारे से , थके से , परेशां से क्यों नज़र आते हैं लोग अब ,

हम उम्मीद के दीयों से गर मनाएं दिवाली तो कुछ बात बने |



अपना घर तो सजा लिया हमने ,भर लिया है जगमगाहट से ,

अब किसी झोंपड़ी को भी हम जगमगायें तो कुछ बात बने |



माना कि हम गैर हैं , और उस की तवज्जो के काबिल भी नहीं ,

मगर आज तो दिवाली है,आज वो गले से लगाएं तो कुछ बात बने |........मधु

ग़ज़ल "मुझे मंजूर नहीं "

एक ग़ज़ल ......


यूं तो खुश्क मंज़र और खुश्क दिल लोग हैं इसशहर के ,

पर बादल बरसे सिर्फ मेरे आँगन में ये मुझे मंजूर नहीं

,

कुछ अजनबियों को अपने घर में पनाह तो दी हमने ,

अब उन की खातिर अपनों को निकालूँ ये मुझे मंजूर नहीं

...

इधर मंदिर है, उधर मस्जिद है और मैं बीच में खड़ी हूँ ,

तेरी ही दुनिया में हो तेरा ही बंटवारा ये मुझे मंजूर नहीं



मेरी इबादत से अगर तू मुझे मिल भी जाय तो मेरे मौला!

इतने अपनों को छोड़ कर तुझे पाना मुझे मंजूर नहीं .....मधु 21 September at 20:27