ग़ज़ल "एक दीपावली ऐसी भी ........."
एक दीपावली ऐसी भी .........
लकीरों पर थमी जिंदगी को हम बदलें तो कुछ बात बने ,
जो जम से गए हैं अहसास,वो कभी पिघलें तो कुछ बात बने
अमावस की रात को जैसे चीर करजैसे उतर आती है दिवाली
कुछ ऐसे ही हम चीर डालें मन का अँधेरा तो कुछ बात बने |
इतने हारे से , थके से , परेशां से क्यों नज़र आते हैं लोग अब ,
हम उम्मीद के दीयों से गर मनाएं दिवाली तो कुछ बात बने |
अपना घर तो सजा लिया हमने ,भर लिया है जगमगाहट से ,
अब किसी झोंपड़ी को भी हम जगमगायें तो कुछ बात बने |
माना कि हम गैर हैं , और उस की तवज्जो के काबिल भी नहीं ,
मगर आज तो दिवाली है,आज वो गले से लगाएं तो कुछ बात बने |........मधु
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