एक सोच कुछ ऐसी भी ......
एक सोच कुछ ऐसी भी ......
by Madhu Gujadhur on Sunday, 03 April 2011 at 20:01
ये चंद साँसों की जिंदगी ,ये खुद में बड़ी नायब दौलत है ,
इसे अस्काम,अफसुर्दा , अज़ाब से यूंही अबस ना करना |
वो मिल जाए कहीं यकसां ,तो मुहोब्बत से गले लगा लेना
उन खानदानी रंजिशों का अब, उस से जिक्र भी ना करना |
जो बह कर आया है तुम तक बस उतना ही तो तुम्हारा था
किसी और के दरिया को तुम आब-ए-तल्ख़ से न भर देना |
बेशक तुम्हारा वो दुश्मन था कभी, अब जा रहा है दुनिया से ,
भुला कर गिले शिकवे आज उस की मय्यत को कन्धा देना
किसी भी कामयाबी का राज़ तो बस इतना ही है यारो ,
चलो तो ......रास्तों पर नहीं अपने पैरों पर ऐतबार करना . ......मधु
अस्क़ाम= बुराइयां, कमज़ोरियां, कमियां
अफ़सुर्दा= उदास, विषाद
अज़ाब= पीड़ा, सन्ताप, दंड
अबस= लाभहीन, बेकार, व्यर्थ, तुच्छ
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