शेर -ओ- शायरी
अपने दिल की बात कहने , सुनने को अब कोई दिल नहीं मिलता,
दर्द से भरे दिलों को अपना दर्द सुनाने की हिम्मत ही नहीं होती .....मधु
या खुदा ! अपनी ही दुनिया में अपने ही बन्दों से यूं मुंह छिपाए रहना,
तेरे लिए नामुमकिन तो नहीं फिर भी , मुश्किल तो बहुत होता होगा .......मधु
अगर भूल जाऊं तुझे याद करना तो मालिक ! तू नाराज नहीं होना ,
देख तो अपनी इस दुनिया में तूने , मुझे कितना उलझा रखा है ......मधु
रातों को ख्वाब देखने की आदत ,अब छोड़ दी है हमने ,
दिन में देखते हैं ख्वाबऔर दिन में ही उसे पूरा कर लेते हैं .....मधु
मुश्किलों में घबरा कर उसे आवाज तो बहुत दी थी हमने ,
उफ़ ! अपने बन्दों की आवाजों से खुदा भी बहरा हो गया है ............मधु
बनायी है ये कायनात तो कुछ सोच कर ही बनायी होगी तूने ,
आज अपनी ही सोच पर तुझे पछतावा भी जरूर होता होगा .......मधु
बदलते जमाने के साथ ,काश हम भी बदल जाते तो अच्छा था ,
आज ना कोई हमें पूछता है ,ना ढूँढता है और ना आवाज ही देता है ......मधु
ढलती शाम के साथ फ़ैल जाती हैं ना जाने कितनी यादें मेरे आँगन में ,
और मैं उन्हें बटोरने, संवारने, दुलारने लगती हूँ कि दिन निकल आता है ......मधु
शब्द चुक गए, स्याही ख़तम हो गयी, पन्ने भी इधर उधर उड़ चले,
और जज्बात हैं मेरे कि उफ़ ! अब भी ख़तम होने को नहीं आते .......मधु
मेरे पैरों के छाले भी मुझे ,आगे बढ़ने से रोक नहीं पाते हैं अब,
शुक्रिया मेरे जहन का जो अब दर्द का अहसास ही नहीं देता मुझ को ......मधु
उफ़ ! आज तो इतने गुरूर से तेरे पड़ते हैं कदम इस धरती पर ,
और कल इसी धरती से तू लोगों के कंधो पर चल कर जायगा ......मधु
समुन्द्र की रेत में मिल तो जाती हैं सीपियाँ मगर खाली ,
मोती से भरी सीपियों के लिए तो गहरे में डूबना ही होगा .......मधु
विरासत में जो दी थीं तूने 'उसूल और अख़लाक़' की दौलत माँ मुझ को ,
मैंने खूब लुटाई वो दौलत माँ !और औलाद को भी विरासत में दे डाली है .....मधु
हथेली की लकीरों में तू लिखता है तकदीर और खुदा कहलाता है ,
तेरे ही लिखे को निभाते हुए कोई फ़रिश्ता तो कोई हैवान बन जाता है .......मधु
थमा कर 'कलम' अपनी वो मेरे हाथ में ,खुद ना जाने कहाँ चला गया ,
और हम उतारते हैं हर्फ़ पन्नो पर , वो खुद आंसुओं से धुल जाते हैं ......मधु
अब तो अँधेरे में भी हमें अपनी परछाईं नज़र आये है,
तू कहीं चुपचाप मेरे भीतर ही तो नहीं छुपा बैठा है ?.......मधु
खुशनसीबियों की छांव में पनपते हैं कुछ ऐसे कांटे ,
जो फिर बस दुःख की धूप में ही ,सूख कर झड पाते हैं .......मधु
मेरे बन्दे ! सब्र कर ,तेरे दुःख तकलीफों का इल्म है मुझ को
देख तेरी तकदीर को बनाने में लगी , मेरी सारी कायनात है .......मधु
मैं डूब भी जाऊं तो बस उस घडी बचा लेना मुझ को भगवन ,
जिस घड़ी डूबते हुए भी मेरे होठों पर तेरा नाम आ आये ........मधु
लिए कागज और कलम हाथ में देरसे कुछ इस सोच में मशरूफ हैं हम ,
किस के नाम लिखे 'दुआ 'अपनी, हर शख्स तो अपना सा नज़र आता है .......मधु
देख कर दरख़्त के नुचे हुए पत्ते और उस की टहनियों पर लटके लाल काले चीथड़े ,
सोचती हूँ अगर मुराद ही पूरी करवानी थी तो काश! बस कहीं दो दरख़्त और लगा देते ........मधु
बना कर बिखरा तो दी हैं इतनी लकीरें मेरी हथेली में तूने मौला,
जिस लकीर में था उस का नाम ,वो लकीर तो बनायीं ही नहीं तूने ......मधु
भिगो कर उंगली पानी में ,कभी लिखा था रेत पर तेरा नाम ,
गज़ब कि बरसों बाद भी ना वो पानी सूखा ..ना वो रेत उड़ा .....मधु
एक ताजमहल को बना कर 'शाहजहाँ' तो आज मर कर भी जिन्दा है,
और वो कारीगर ,काट दिए गए जिन के हाथ, उफ़! उन्हें कोई नहीं जानता .....मधु
वज़ह तो शायद कुछ भी नहीं थी , खुद पर इतराने के लिए ,
'बेटी' हूँ भारत की फिर भी मुझे इस बात पर इतराना आया .....मधु
रिश्तों को शर्तों से और शर्तों को जज्बातों से बाँधना ,
यही एक वो भूल है ,जो रिश्तों को पनपने ही नहीं देती ......मधु
मालिक ने बिखेर दी थी न्यामतें, ढेर सी मेरे सामने ,
मगर उन सब के बीच मुझे, बस एक 'तू' ही भाया ........मधु
माँ की आँखों की नमी , अपने दामन में सोंख लेना ,
माँ के एक कतरा आंसू में, दरिया का वजूद होता है .....मधु
पल भी न गवाना ,पोंछ देना उन आँखों की नमी को अपने दामन से ,
माँ की आँख से निकला एक आंसू ,पूरे दरिया की ताकत रखता है .....मधु
हकीम जी ! खुदा के वास्ते मेरे जख्मों का इलाज़ ना करना क्योंकि
जिस ने जख्म दिए है अब वो ही 'मरहम' लगाये यही शर्त है हमारी.....मधु
उसे याद करने के तो सैकड़ों बहाने हैं मेरे पास ,
काश! भुलाने का भी कोई एक बहाना बता देता ......मधु
रौशनी का टुकड़ा ज्यों चमक जाए है एक उजड़े से अँधेरे आँगन में ,
कुछ इस तरह से तेरी यादों ने चमकाया है मेरी जिंदगी को जब तब .......मधु
ता उम्र जिंदगी की फटी चादर को , पैबंद लगा कर सीते रहे हम ,
सुई से छिदी उँगलियों को मुंह में दबाये ,अपना ही खून पीते रहे हम ......मधु
वो रास्ते ,जिन पर मुझे चलने की हिदायत थी तेरी ,
उन्ही रास्तों से उतर कर तू खुद कहाँ चला गया मालिक !......मधु
वो बात जो कभी हमने अपने कानों को भी ना सुनाई थी
उफ़ ! कैसे वो बात मेरे शहर में अब चर्चा-ए-आम हो गयी ......मधु
चाकुओं से गोद दिया है अपनी इन हथेलियों को मैंने इस डर से ,
जिन लकीरों में किस्मत से तुझे पाया है ,वो कहीं बदल ना जाएँ ......मधु
पेड़ों से गिरी इन टहनियॉ को देख कर एक ख्याल सा जागा है ,
कि काश ! तुम पास होते और हम यहीं एक घोंसला बना लेते .......मधु
मेरे माल-ओ- असबाब का अब कोई खरीददार नहीं मिलता ,
ये पुरानी रवायतें..अब किसी को इन की जरुरत ही नहीं रही .......मधु
अब तो गिनना ही भूल गए हैं हम कि कितने बरस बीत गए ,
बस इतना ही याद है कि वो आया था और वो चला गया एकदिन ......मधु
बेरुखी उस की मुझे इसलिए तकलीफदेह नहीं लगती ,
क्योंकि बेरुखी तो उस महज़ एक ढोंग है ...दिखावा है .......मधु
खुदा से दूआओं में मांग तो ली न्यामतें दुनिया भर की हमने ,
अब खौफजदा हैं कि अगर वो देने पर उतर आया तो रखेंगे कहाँ ......मधु
मेरा मन बावरा सा यूंही एक परछाईं को पकड़ने की जिद थामे बैठा है ,
कैसे समझाएं कि जिस की परछाईं है ,वो शख्स ही हमारा ना हुआ कभी ....मधु .
कितने दर्द भरे अल्फाज निकलते है कलम से तेरी
तूने 'अश्कों' के अलावा स्याही को भी छुआ है कभी ?......मधु
उफ़ !तेरे लिखे को पढ़ कर हर बार यूं महसूस हुआ है मुझ को ,
कि आज फिर एक और नया शख्स तेरे भीतर कंही जन्मा है ....मधु
काश !ये रूमानी किस्से, येचाँद सितारों की गवाही, ये मुहोब्बत की बातें ,
निकल कर किताबों से कभी किसी जिंदगी की हकीकत भी बन जातीं .....मधु
चाहते तो बहुत थे हम कि वो भी कभी कोई शिकवा करें हम से ,
उन को कहते सुना कि "शिकवा तो बस अपनों से किया जाता है "........मधु
जिंदगी के इस मुकाम पर आकर ,अक्सर ये ख्याल आता है मुझे ,
पहले ही मिली होती ये 'अक्ल' अगर, जिंदगी आज कुछ और होती .........मधु
ना जाने कितने पल यूहीं गवाएं ,बर्बाद किये सारी जिंदगी हमने ,
बस आखिरी सांस पर चाहा 'एक पल' ,वो मालिक से दिया ना गया .....मधु
ता उम्र तो गुरूर में डूबे रहे इतना कि , ये भी ना कभी सोचा हमने ,
और बाद मरने के ये जाना कि ,उफ़ ! गुरूर को भी मौत आती है .......मधु
एक मुद्दत के बाद आज मेरे ख़त का जवाब आया है ,
ताज्जुब कि ख़त में उसने मुझसे मेरा 'नाम' पूछा है ........मधु
ये हवाएं भी ना जाने किस किस के दामन को छू कर आती हैं ,
उन सब के बीच भी मैं तेरी 'खुशबू' को झट से पहचान लेती हूँ .......मधु
बंद दरवाजों को खोलने की गुज़ारिश ,मत करो मुझे से ,
जो खुद पर 'ढोता' आया हूँ वो 'दर्द' बाहर निकल आएगा ......मधु
एक मामूली से नज़र आने वाले से इंसान में भर कर इतनी ताकत ,
या खुदा ! आज तूने अपने रहने का पता बता दिया हमको ........मधु
इतने दर्द और तकलीफों के बावजूद ,ना जाने क्या बात है मौला,
तेरी इस बेरहम दुनिया से जाने को ,फिर भी मेरा दिल नहीं चाहता .......मधु
पत्थर पर जमी दूब से कोई जाकर तो ये पूछे,
इतनी हिम्मत,इतना हौसला तूने पाया कहाँ से ?.........मधु
मुहोब्बत की बारिश में उफ़! बहुत 'भीग' गए थे हम ,
किस्मत को जुदाई' की हवा फिर चलानी ही पड़ी .......मधु
बरसों की मशक्कत के बाद लिखी थी किताब -ऐ-जिंदगी हमने ,
अल्लाह ! हर शख्स की किताब में अपना सा ही किस्सा पाया .......मधु
मेरी मांग में तेरे नाम का सिन्दूरी सूरज जो चमकता है ,
बस उस की रंगत ने मुझे 'इज्जत' के काबिल बना दिया .........मधु
उफ़ ! मेरे इस मुठ्ठी भर 'दिल'की जरा चाहना तो देखो,
सारी दुनिया को अपने अन्दर बसाने पर उलझा हुआ है ........मधु
तुम खोलो तो सही उन किवाड़ों को जो सदियों से बंद हैं ,
कौन जाने जो ढून्ढ रहे हो बेताबी से ,वो वहीँ मिल जाए .......मधु
इन किताबों से ये बे-इन्तहा मुहोब्बत मुझे बस इसलिए है दोस्तों ,
मैं ना कह पायी कभी जो बात ,वो किताबों ने हर्फों में बयां की हैं ........मधु
नाशुक्र, नाशिनास ,नासबूर, नासमझ नाशाद तो नहीं हूँ मैं
हरकतें हो जाती हैं ऐसी ,जब दुनियादार बनने निकलता हूँ .........मधु
किसी भी कामयाबी का राज़ तो बस इतना ही है यारो ,
चलो तो ,रास्तों पर नहीं अपने पैरों पर ऐतबार करना .......मधु
या खुदा ! वो इतनी दूआओं के बाद मिला है मुझ को कि मैं हैरान हूँ ,
जिंदगी अब उस कि मुहोब्बत में गुजारूं या तेरा शुक्रिया अदा करने में ......मधु
संवार लेती हूँ यूं तो आईने में खुद को बहुत बार मैं ,
मेरे "मैं " को जो संवार दे वो आइना कहाँ से लाऊँ ......मधु
जिंदगी यूं नहीं तो कुछ और हुई होती ,
तेरी कमी हमें तब भी यूं ही खली होती .....मधु
क्यों शिकवा करूं कि तेरा रहम-ओ -करम मुझ तक पहुँच नहीं पाता,
मालिक ! खता तो मेरी ही है कि मुझ से लुत्फ़-ए-गुनाह छुट नहीं पाता ......मधु
उस पत्थर तराशने वाले के जज्बात कुछ यूं भी पिघले,
कि तराशी हुई मूरत पर मोम का मुलम्मा सा चढ़ गया .....मधु
बेख्याली में कहीं कुछ ऐसा, कभी लिख दिया था मैंने ,
जिस का जवाब उस ने पूछा ,मुझे तो खुद भी मालूम ना था ......मधु
वो कुछ लोग थे जो मेरी जिंदगी के अँधेरे को 'जुगनू' सा चमका गए,
वर्ना 'लील' लेता ये अँधेरा सब कुछ, अन्दर का भी और बाहर का भी .......मधु
मेरे मांझी ने बहुत बार चुपके से आकर मुझे यूं हौसला भी दिया है,
खैर खुदा की ,कि तुमने मुझे पीछे छोड़ा ,तो तुम 'जी' भी सकीं .......मधु
दुनियावी सौगातों से भरूं झोली ये तो अरमान ही नहीं है मुझ को
बस एक 'अख़लाक़' से भर दे मेरा दामन तो इनायत होगी मालिक !.......मधु
उफ़ !ये बिखरे से हालात , उलझे से जज्बात ,ये तुम मुझे कहाँ ले आये हो
ऐ जिंदगी ! तू भी अगर 'बेमुहोब्बत' ही गुज़र जाती ,तो बहुत अच्छा था ........मधु
अपनी ही परछाईं में तेरे होने का मासूम ख्याल लिए ,
उफ़ !सारी रात सुनसान सड़कों पर, हम यूं ही घूमा किये ......मधु
सब गिले शिकवों को छोड़ कर ये वक्त तो गुज़र ही गया ,
और एक नन्ही सी सिसकती 'मधु' आज भी मेरे साथ है ......मधु
स्मृतियों के बोझ तले भी चलायमान है एक ऐसी दुनिया मेरी
जहाँ वेदना के पहाड़ ,अश्रुओं की नदियाँ और आहों की हवाएं है ......मधु
मेरी बेईन्तहा मुहोब्बत का अंजाम ,"तेरा यूं दूर हो जाना है मुझ से "
कोई नयी बात नहीं 'मुहोब्बत' दुनिया में यूं भी ठुकराई जाती है .......मधु
तेरी एक जिद्द ने हालात कुछ यूं बदल डाले,
कि अब तू है और तेरी जिद्द है , मगर ' हम नहीं कहीं'..........मधु
मशक्कत सेपत्थर को तराश कर ,तेरी जो मूरत बनायी थी मैंने ,
मुश्किल था बहुत फिर भी 'दिल' उस में मैंने मोम का ही डाला .....मधु
बरसों से अपनी मुट्ठी में जो छिपा रखी थी तेरी 'हया' और 'खुशबू' हमने ,
उफ़ ! आज भूले से वो मुट्ठी क्या खुली जैसे " फागुन का मौसम आ गया "......मधु
ये क्या गज़ब किया हमने खुदा से तुझ को मांग कर ,
वो बेचारा बेबस सा अब हम से नज़रें चुराए फिरता है .......मधु
दिन महिना या तारिख मिला कर रिश्ता बनाना बेफिजूल है ,
'दिल' मिल जाएँ तो दुनिया कि सारी ताकतें सलाम करती हैं .......मधु
अपने रंगों में कुछ इस तरह रंग डाला है उस ने मुझे
कि मेरा रंग कौन सा था , ये मुझे अब मालूम ही नहीं ......मधु
तेरी मुहोब्बत के रंग ने हमें यूं सराबोर कर दिया
कि पिया ! बरसों बीत गए ,हमने होली नहीं खेली ......मधु
उन को ये शिकायत है कि हम बेअसर, बेवजह बेकार लिखते हैं,
वो ये तो बताएं कि , भला किस के जज्बात आज किस से मिलते हैं ?....मधु
गर तू ये जहाँ ना बनाता तो कभी मालूम ही नहीं होता हमें ,
कि खामियां तो ढेर सी ,खुदा के काम में भी पायी जाती हैं .......मधु
मेरे ख्वाबों की ताबीर का जिम्मा ,तू मुझ पर छोड़ दे मालिक !
रहम इतना जरूर करना कि , तू उन्हें बस कभी तोडना नहीं ........मधु
गहरे दरिया को पार करने का हौसला रखते थे हम
उफ़ !क्या खबर थी कि तेरे अश्क हमें यूं डूबा डालेंगे ........मधु
मेरे इस शबाब पर अब तू इतना भी शायराना ना हो ,
मैं तो मौसम हूँ मुझे ढलते, बदलते देर नहीं लगती ....मधु
ये जिस्म यूं तो जिंदगी के ताबूत में दफन ही रहा लेकिन,
जब मौत ने किया आजाद तो बन्दों ने फिर से दफना दिया ........मधु
रफ्ता रफ्ता जिंदगी ने हमारी यूं रफ़्तार पकड़ ली कि ,
ता -उम्र उस के साय को समझ कर जिंदगी हम दौड़ते ही रहे ....मधु
वो कुछ बातें ऐसी थीं जिन्हें ना हम समझ सके और ना समझा सके उन को ,
और वो हैं कि मजबूर किये जाते हैं कि " अरे ! हाल -ऐ -दिल बयां तो करो ........मधु
माना कि हर चीज का देने वाला और लेने वाला बस एक 'तू' ही है ,
समझा मुझे कि कुछ देकर फिर लेने में ,तुझे क्यों शर्म नहीं आती .......मधु
मांगू मैं कुछ तुझ से अपने लिए ,आह ! मेरी तो इतनी हसियत भी नहीं है ,
तू तो मालिक है कायनात का , तू ही देख क्या लिखना है मेरी किस्मत में .......मधु
मुश्किलों के आगे घबरा कर ,सर अपना झुकाया तो था हमने ,
पर देख ले वो दर तेरा ही था,जहाँ झुकाया था सर अपना हमने ........मधु
इंसान में इंसानियत की कमी यूं तकलीफ दे लगती है मुझे,
कि खुदा को भी झकझोर कर सवाल करने को जी चाहता है .......मधु
भर कर खुशबू फूलों में तू ने जीने का जो जरिया दिया है मालिक,
बस जी रहे हैं उन्हीं खुशबूओं के सहारे........शुक्रिया तेरा शुक्रिया ........मधु
बेशकीमती होती हैं जिंदगी की वो घड़ियाँ जिन में ,
मुहोब्बतऔर इबादत दोनों साथ साथ चला करते हैं ..............मधु
ढूंढते फिरते हैं आज उन चंद खुशियों को ,हम अपना झोला लिए,
कभी जिन खुशियों के बोझ से ये झोला, उठाये ना उठता था हम से .......मधु
बेरुखी इतनी भी ना करो कि बिखर जाएँ जज्बात सारे,
इन्हीं जज्बातों के सहारे तो सुनो! आज तक जिन्दा है हम ......मधु
छोड़ कर जाने से पहले उस ने ,मुड़ कर बार बार देखा तो था मुझे ,
वो अश्क जो रोक लेते उसे ,मेरी आँखों में ही अटक कर रह गए ......मधु
लहरों के उतार -चढ़ाव में अपनी कश्ती को संभालना तो न-मुमकिन था ,
लेकर चप्पू मेरे हाथ से उस मालिक ने ,आनन्-फानन में पार लगा दिया .......मधु
उफ़ ! जी का जंजाल सा बन कर रह गयी हैं वो यादें पुरानी,
और बेबसी हमारी कि ना छोड़े बनता है और ना ढोते बनता है ......मधु
तैरना तो जानते थे हम, मगर दरिया में जाकर भूल गए ,
ये मुहोब्बत-ऐ -दरिया थी , या भूलने की बीमारी हम को ......मधु
मैं सोचती हूँ बहुत बार कि क्यों इतना कुछ पाकर भी ,
हर इंसान कि जिंदगी में एक कोना खाली सा रहता है ?........मधु
मुकद्दर पर ऐतबार ,भला किस को हैं यहाँ ,
मुकद्दर से बड़ी ताकत, मुहोब्बत है मेरे पास .......मधु
बड़ी कश -म -कश से जिंदगी को यहाँ तक खींच तो लाये हैं हम ,
मगर जिंदगी के साथ जुड़ने वाले मेरे अपने ,वो पीछे कहाँ रह गए ?........,मधु
मुझे रोकने की तमाम कोशिशें बेकार गयी तुम्हारी दुनिया वालो ,
मेरा एक ही सच तुम्हारी इतनी बड़ी ताकत पर भारी पड़ गया ......मधु
कितने धीमे से , चुपचाप लिए चलती है सच्चाई , इस जिंदगी को ,
उफ़ ! और झूठ का आमद अपने साथ कितना हुड़दंग लिए होता है..........मधु
खुशियाँ मुहोब्बत और सुकून गर आसमां से बरसते ,तो हम ने भी झोलियाँ भर लीं होती ,
आह ! ये सब तो वो शै हैं जिन्हें अपने खून पसीने से, दिल की जमीन पर उगाया जाता है ......मधु
तालीम और तजुर्बे ने मेरी सोच को कुछ इस तरह से संवारा है ,
कि फूलों के देख कर कांटो की, बरबस याद जहन में आ जाती है.....मधु
मैं भला क्या दे दूँगी किसी को ,और क्या औकात है मेरी
अरे अगली सांस तक पर तो अपनी ,कोई हक़ नहीं है मेरा ......मधु
ताल्लुक हमारे कुछ इस तरह टूटे कि आमने सामने रह कर भी ,
ना उन्होंने निगाह उठा कर देखा, ना हमने निगाह उठा कर देखा......मधु
इतनी मिन्नतों के बाद उगते हुए सूरज ने उगला है ये राज,
गर पहुचना है मेरी ऊँचाई तक तो आग में जलना तपना होगा ......मधु
दुशमनों को और अपनों को पहचानने में हमारी उम्र लग गयी लेकिन ,
जनाज़ा -ऐ गुस्ल करवाया हमें अश्कों से, जिन्हें दुश्मन समझते थे , ......मधु
तू अमीर है ,तेरे पास बेवफाई की अटूट दौलत है ,
मैं अपनी वफ़ा के साथ कंगाली में भी राजी हूँ ......मधु
हम भी अपने बद- हालातों से बखूबी लड़ लिए होते लेकिन,
इन हालातों तक पहुचाने वाले 'अपनों' का लिहाज़ आ गया ........मधु
मेरी हालात-ऐ- जिंदगी तो जरूर ही बदल जाती मालिक !
मेरी इबादत में थोड़ी सी कमी अगर तूने मंजूर कर ली होती ......मधु
इबादत के जूनून से जिस तरह तुझे बरसों मैंने खोजा है या खुदा !
तू अब भी अगर मुझे ना मिल पाए तो ,अब ये तेरी कमजोरी होगी ....मधु
दिल में तो मेरे ही लगा दिया था, एक आइना उस खुदा ने ,
गुरूर ने झाँकने ना दिया , खुद का ही चेहरा ना देख पाए कभी ......मधु
रोज ही रंग बदलती इस दुनिया के एक कोने में , एक छोटा सा घर है मेरा
जहाँ आज भी बेश कीमती रवायतों का ,सुबह शाम एक मेला सा लगता है ......मधु
अरे ! इस में हैरानी की कोई बात नहीं, ऐसा ही होता चला आया है ,
रुतबा है तो सौ सौ सलाम तुम को , वर्ना तो अपने भी पहचानते नहीं ....मधु
मौला ! तेरी इनायतों का पन्ना तो भरता ही चला गया ,
और हम बेबस ,कि अब ना और कागज है ना कलम ......मधु
दुनिया की ये जिद कि हम दुनियादारी में रहें घिरे ,
तेरा ये हुकुम कि दुनिया से बाहर निकल कर भी देख ....मधु
चिरागों को जलाने की कोशिश में इतने मशगूल से हो गए थे हम,
कि जल गया चिराग से आशियाना हमारा और हम बेखबर ही रहे ......मधु
मेरे गुनाहों की फेहरिस्त तो कभी ख़त्म ही ना होती मालिक !
गर तूने झकझोर कर मुझे इस गफलत से जगाया ना होता ........मधु
वो थमाता है कलम मेरे हाथ में, और लिखवाता है उंगली पकड़ कर ,
मालिक ,तू जो लिखवाता है उस पर चलने की मुझे ताकत भी दे दे .......मधु
उन पुरानी रवायतों पर जीना ये मेरी मजबूरी तो नहीं है
हाँ ! जीने के लिए उन रवायतों का होना मजबूरी है मेरी .......मधु
अल्फाजों को तरस कर रह गयी ता- उम्र ये जुबान मेरी ,
अपने जज्बात बयां कर सकूं ..मुझे ऐसा कोई हर्फ़ ना मिला .......मधु
उफ़ ! वो बात इस कदर दूर तक फ़ैल जायेगी ,हमें मालूम ना था ,
मेरे दिल की बात ,तेरे दिल से बाहर निकली तो भला क्योंकर ?.....मधु
वक्त ,हालात और रवायत के चलते उस का बदल जाना तो वाजिब था मगर
हैरान हूँ कि इन वक्त ,हालात और रवायत ने भला हम को क्यूं न बदला .....मधु
तार्रुफ़ बस इतना ही था कि दुनिया कि भीड़ में हम तुझ से मिले थे कभी ,
दर्द बस इतना है कि आज इस दुनिया की भीड़ में ही ढूंढतेफिरते हैं तुझे ......मधु
अपनी इन बंद आँखों से मैंने कुछ ऐसे भी हसीं ख्वाब देखे हैं ,
कि जिन्हें देख कर मेरी आँखों ने अब खुलने से मना कर दिया .....मधु
ओढा था तेरा कम्बल मालिक ! कि, दुःख दर्द से मिलेगी निजात ,
मेरी सैकड़ों बदगुमानियों ने उस में भी, बे-ईन्तिहा छेद कर डाले ......मधु
क्या गज़ब के लोग थे वो ,और क्या गज़ब की थी उन की जिन्दादिली
आह! ऐसे लोगों को आज हम सिर्फ किताबों के पन्नो पर ही देख पाते है ......मधु
थमा कर ये कलम मेरे हाथ में, वो इतनी दूर चला गया मुझ से ,
कि अब हर्फों और अल्फाजों में ,मैं उसे कागज पर उतारा करती हूँ ....मधु
तेरी मुहोब्बत में मेरी दीवानगी ये आलम भी रहा है बारहा ,
जब अपने ही अन्दर झाँक कर हमने तुझ से गुफ्तगू की है ......मधु
जिंदगी के किसी मोड़ पर अगर वो लौट भी आये तो क्या है ,
वो लम्हात,वो जज्बात, वो अंदाज , तो ना अब लौटेंगे कभी .......मधु
उस ने तो मुझ से कभी कोई वायदा ही नहीं लिया था फिर भी ,
दरवाजे की हर आहट पर मेरा दिल क्यों यूं बैचेन हो उठता है .....मधु
अपनी इस नीली छतरी के तले घेर कर ऐ खुदा !
तूने ना बारिश से बचाया है हमें और ना धूप से .......मधु
गैरों में थी कहाँ इतनी हिम्मत कि वो करते बदनाम हम को ,
मेरे अपनों को ये ताकत देकर ,उफ़ !ये तूने क्या किया मालिक .....मधु
या खुदा ! कोई तरकीब हमें ऐसी भी तो सिखा दे ,
सजदे तो पड़ें तेरे मगर कोई खवाइश न हो दिल में ......मधु
मेरी फकीरी में भी अमीरी का जो जूनून झलकता है यारो,
ये वो खानदानी दौलत है जो ,बस खून में मिला करती है ......मधु
उन तमाम रवायतों को आज तक समेट कर बैठे हैं हम ,
जिन रवायतों का आज ना कोई मान है न कोई पहचान है ......मधु
तू, अगर मुझ से खफा है, कि तेरी कमियां क्यों गिना दीं मैंने
मेरे मौला ! याद कर ,तू ने ही तो मुझे कुछ हट कर बनाया था .......मधु
जखीरा -ए -हर्फ़ लायें तो है कल खरीद कर हम लेकिन ,
रवायत,खुद्दारी ,ईमान ,मुहोब्बत ये हर्फ़ तो इस में हैं ही नहीं ....मधु
देख कर लकीरें अपने हाथों की ,उफ़ ! मुझे हैरानी होती है ,
जो लिखा था मेरी लकीरों में ,क्यों वो मुझे मिल नहीं पाया .........मधु
देख कर लकीरें अपने हाथों की ,उफ़ ! मुझे हैरानी होती है ,
जो लिखा था मेरी लकीरों में ,क्यों वो मुझे मिल नहीं पाया .........मधु
वो वक्त ,वो लोग ,वो तहजीब वो जज्बा ही कुछ और था जिसे हम पीछे कहीं खो आये हैं ,
सैकड़ों फूफू,मौसी,चाचा मामू हुआ करते थे और हमें न उन के नाम मालूम थे न मज़हब ......मधु
माना कि जुबां को बंद रखना ही तकाजा है वक्त -ए-नजाकत का ,
पैगाम तो दिल से भी दिया जा सकता है गर तुम समझ सको तो ......मधु
उन पुराने दिनों में लौट जाने के, बरसों से रास्ते तलाश रहे थे हम,
उफ़ ! किसी ने सब तहस नहस कर डाला नाम-ओ-निशान मिटा डाला ......मधु
तरक्की की ताकत अता कर दे मालिक मगर इस इल्म के साथ ,
आगे बढूँ बस उतना ही कि, लौट आने को दिल ना फिर तडपे कभी ......मधु
वो तन्हाईयाँ भी हमारी बहुत खुशनुमा हो जाती हैं ,
तैर कर चले आते हैं , कुछ ख्वाब , जिन में तेरे......मधु
वो शख्स जिस के इन्तजार में उम्र गुजार दी थी हमने
वो आया आखिरकार ,उफ़ !किसी और का हाथ थामे हुए ......मधु
बड़ी शिद्दत से इबादत की कोशिशें की मैंने
कभी, तू 'खुदा' कभी 'खुदा' तू बन जाए है ....मधु
मेरी मुंदी आँखों से जब कोई देखेगा ये दुनिया के नज़ारे ,
या खुदा ! मुझ पर ये तेरी सब से बड़ी इनायत होगी...........मधु
रातों के समंदर में तो दिन 'डूब'जाता है मगर,
दिन डूबने पर भी 'रात'गहरा जाती है डूबती नहीं .......मधु
दाद पाने की कोई तवक्को तो ना थी हम को लेकिन,
हमारे अशआर उन तक पहुचें ,ये हसरत रही जरूर ......मधु
वो एक ही मुलाक़ात थी खुदा से ,और दिल मेरा टूट गया ,
मानने को अपनी खामियां ,वो किसी दर्जा तैयार ना हुआ ........मधु
दिल दश्त था मेरा और तिशनगी की थी धूल,
याद तेरी उस में भी ,एक फूल खिला जाए है .......मधु
सूरज को थामने की कोशिश में ,उंगलियाँ तो अपनी जरूर जला लीं मैंन
नयी नस्ल को रौशनी से भरने के आगे ,तो मेरा वो जख्म कुछ भी ना था ......मधु
या खुदा ! तेरे सदके अब तो कुछ ऐसा डाल दे तू मेरी झोली में
जिसे पाकर कुछ और पाने की फिर तमन्ना ही ना हो कभी .....मधु
लोग तो बार बार पूछते रहे हम से "अंधरे से तुम्हें खौफ ना लगा ?"
अब क्या बताते कि किसी की मुहोब्बत का चिराग दिल में रोशन था ......मधु
वो एक बे-परवाह सी मुहोब्बत थी ,जिसे कभी बांधना ना आया हमें ,
आज जब लुट गए हैं , तो लोगो से "बांधने " का हुनर पूछते हैं हम .....मधु
"जिंदगी भर साथ दो तुम मेरा "ये तो गुजारिश नहीं है मेरी,
बस जब तलक मैं चलूँ ..................तब तलक तुम चलो ......मधु
ना जाने कितनी तोड़ तोड़ कर कलम बस दो ही हर्फ़ लिखे थे हमने
उस ने पढ़ा...वो मुस्कुराया .........वो बोला "बात कुछ बनी नहीं "......मधु
वो एक तरफ़ा इल्जाम था जिसे सर माथे पर ले लिया था हमने ,
हम कुसूरवार नहीं थे कभी ..मगर सवाल तेरी आबरू का था ......मधु
एक मुद्दत हुई जब वो गुजरा था मेरी रह गुजर से कभी ,
उस के क़दमों की आहट मुझे आज भी क्यों सुनाई देती है?......मधु
मेरी मुहोब्बत को समझने में उस ने इतनी देरी कर दी या अल्लाह !
कि जब उसने माँगा मेरा हाथ, उफ़ !मेरा तो जिस्म भी धरती पर ना था .......मधु
मालूम है कि मेरे मरने के बाद ये ,दुनिया कहीं थम तो नहीं जायेगी ,
मगर ये नायाब 'मुहोब्बत' भी इस दुनिया में फिर कभी देखी ना जायेगी ......मधु
वक्त और हालात का बहाना तो बस एक बहाना है तेरा ,
हम तो वक्त और हालात को बदलने की भी कूव्वत रखते थे ......मधु
सैकड़ों बहाने थे और ठिकाने थे डूबने के जिंदगी में मेरी ,
तैर कर बाहर निकल आने का बहाना तो बस' एक तू ही था' ......मधु
तेरे एक वजूद ने ही इस दुनिया में टिकाये रखा है हमें ,
वर्ना.............. हम तो कब के अलविदा कह चुके होते .........मधु
एकमुद्दत से तो हमने रखा था जज्बात पर काबू अपना
वो सामने क्या आया , एक पल में सब बेकाबू हो गया ......मधु
लम्हों लम्हों में कटी जिंदगी ,एक याद सी बन जाती है
चुपके से दिल की बात अल्फाजों में बदल जाती है |
कहने को तब भी बहुत कुछ रहता है दबा सा भीतर ,
देखते देखते कहने सुनने की उम्र ही गुजर जाती है .......मधु
ये चिरागों की मंशा थी खुद ही बुझ जाने की ,
अंधेरों से मुहोब्बत का रिश्ता जो कायम हुआ है .......मधु
कोई बस गया है दिल में मेरे, कुछ इस तरह से आकर ,
कि मुझे भी छोड़ने को raaji है, दिल मेरा उसको पाकर , ......मधु
अश्रु क्या छलक उठे आज ...गज़ब की भूल हो गयी ,
जिसे छिपाते आये थे अब तक, वो बात आम हो गयी .......मधु
ये दुनिया तूने अगर हम को बनाने को दी होती मालिक! तो यकीन कर,कि हमने तुझ से कहीं बेहतर बनायी होती ,
दुनिया के दुःख दर्द को हमने समझा है तुझ से जयादा ,ये आंसू ये दर्द ये तकलीफें तो हमने कभी न बनायी होती ........मधु
इस गुमां में थे अब तक कि वो जो भी लिखता है सिर्फ हमारी खातिर ,
"हैं और भी लोग इसी गुमां में " ये बात आज सरे आम हो गयी .......मधु
जब गुजरे थे उन हालातों से तो हमें खुद का भी पता मालूम ना था ,
आज उन्हें सोच यूं हैरान होते है हम ,उफ़ ! ये हालात कभी हमारे थे .......मधु
ये रास्ते जिंदगी के क्यों थम जाते हैं, कभी कभी एक ऐसे मोड़ पर आकर ,
ना आगे बढ़ते बनता है .ना पीछे मुड़ते बनता है और ठहरना है नामुमकिन........मधु
वो लोग कुछ और ही थे जिन के साथ बांटा था कभी किस्सा -ए-दिल हमने
आज जो नयी तहजीब के लोग मिले उन के सीने में तो दिल ही न मिले ......मधु
समुन्द्र का खारापन लिए ये आंसू ,इन्हें यूं ही ना समझना ,
आँखों से निकली ये दो बूँदें आंसू की पूरा समुद्र ही होती है .......
क़यामत तक तो इंतिजार वो करे ,जिसे सब्र हो इतना ,
हमने तो खुदा से आज ही फैसले की दरखास्त कर दी है .........मधु
मूँद कर अपनी आँखों को , अनदेखा तो बहुत किया था हमने
मगर कुछ मंज़र ऐसे थे ,जो मुंदी हुई आँखों से भी नज़र आने लगे .......मधु
अरे ! इतना आसां है इस जिंदगी को खुशनुमा बना देना ,
बस जो भी सामने हो ,उस में अपना ही वजूद देख लेना .......मधु
मेरी कलम से निकले मेरे जज्बातों को जब भी वो पढता है ,
चौंक कर कह उठता है "अरे ! ये हाल -ए- बयां तो मेरा है ....मधु
ताज महल को बनाना तो हमें भी आ गया है अब ,
कोई एक मुठ्ठी वफ़ा अगर ला दे ,तो हम काम शुरू करें ......मधु
उफ़ ! ये क्या गज़ब हुआ कि बहते हुए पानी में भी ,
कल रात जो देखा सपना ,वो ठहरा सा नज़र आया ......मधु
तुम जिस मालिक से शिकवा कर रहे हो ,उसे भी मालूम है ये बात
कि वो कुछ भी नहीं कर पायेगा ,तुम्हें हालात से खुद लड़ना होगा .......मधु
अब जिंदगी सुलगती,बिलखती ,तड़पती या बिखरती नहीं है ,
वक्त और हालात ने उसे जीने का ' कायदा' सिखा दिया है .......मधु
आह ! हमें हैरानगी है कि कैसे वो भुला सका वो सारी बातें ,
जिन्हें मौत के बाद भी हम अपनी रूह से चिपकाय फिरते हैं .......मधु
उस की जिंदगी से तो हम बहुत दूर चले आये थे एक मुद्दत हुई ,
उस की किताब के किसी पन्ने पर, शायद आज भी मिल जाए हम .......मधु
किताब के पन्नों में मिले एक सूखे फूल ने आज फिर भिगो दीं आँखें मेरी ,
क्या दिन थे वो ,जब एक फूल भी दास्ताँ -ए-दिल कहने कि कुव्वत रखता था .....मधु
क्या कहें आने को तो ख्याल, ऐसे ऐसे भी आते हैं कई मर्तबा दिल में कि,
छीन कर कलम मालिक से हमने , लिख दिया होता तेरा नाम अपने पन्ने पर ......मधु
बेशक हम उस की मुहोब्बत के काबिल तो नहीं थे लेकिन ,
इक तरफ़ा मुहोब्बत भी तो वाजिब है इसी दुनिया में ......मधु
क्यों ना इस चार दिन की जिंदगी को हम कुछ इस तरह बिताएं ,
दो दिन मुहोब्बत देने में और दो दिन मुहोब्बत पाने में गुजर जाएँ .......मधु
उस का प्यार भी था , साथ भी था मेरी जिंदगी कि राहों में ,
ये और बात है कि मेरा मुकद्दर ही मेरे साथ ना था .......मधु
तमाम उम्र सिर्फ दो ही बातों को समझने में चली गयी
कि हम क्यों आये हैं यहाँ , और अब हम जायेंगे कहाँ ...मधु
वक्त - ए- जनाज़ा उस की आँखों में नमी क्या देख ली हमने
कफ़न फाड़ कर एक बार फिर से जीने को दिल मचल उठा .....मधु
थाम लेते हम तो आकाश को भी अपनी इन हथेलियों पर ,
तुम ने एक बार जमीं पर हमारा साथ तो निभाया होता .....मधु
काश ! कि मैंने उस चीज को पाने की कभी तमन्ना ना की होती जिंदगी में,
जिसे पाने की ना औकात है मेरी , ना तकदीर से हकदार हूँ मैं उस की....मधु
चंद लाइनों में लिखी तकदीर के वो चंद हर्फों का खेल
कि सारी जिंदगी एक तमाशा सा बन कर रह गयी ......मधु
मुकद्दर में हम जो लिखवा कर लाये थे ,उसे पढना तो आ गया ,
अब वो लिकायत भी दे दे मालिक ! कि उसे बदलना भी आ जाए .......मधु
ये जिंदगी मेरे क़दमों के रुक जाने से, वहीँ रुक नहीं जाती ,
वरन थाम लेती है मेरा हाथ ,अपने साथ साथ ले चलने को....मधु
धरती पर रह कर भी हमें ,नज़र आ जाते है ये मंज़र दर्द भरे
और तू वहां आसमान में बैठा है ......तुझे नज़र नहीं आते ?.....मधु
वो शख्स जिसे तूने मौला ! मेरा खाविंद ही बनाया था ,
कब कैसे वो मेरा ख्वाब,मेरी रूह ,मेरी जान बन गया ?......मधु
वो एक शख्स जो इस शहर की कभी ,जान हुआ करता था ,
आज वो गुजरा इधर से तो, कोई उसे जानने वाला ना मिला ......मधु
किस किस तरह से किस किस को खुश करने में लगी है ये दुनिया,
मौला ! मुझे तो तू वो तरकीब बता दे, जिस से बस तू राजी हो जाए .....मधु
उफ़ ! ये इतना बड़ा आकाश ....मैं भला क्या करूंगी इस का ,
मौला ! तेरे दर पर एक कोना मिल जाए मुझे, बस काफी है .........मधु
वो परवाज हैं हम, जो बहुत दूर तक उड़ने की ताकत रखते है ,
टूट जाए ना कहीं जमीन से रिश्ता हमारा , ये सोच कर कभी उड़ते नहीं ....मधु
जिन्दगी की बारीकियों को समझने की ता उम्र कोशिश में ,
अपने इर्द गिर्द हमने उन बारीकियों का जाल बना डाला है ......मधु
समुन्द्र का पानी खुद - ब - खुद यूं खारा नहीं हुआ होगा ,
किसी की आँख का आंसू अचानक इस में गिर गया होगा .......मधु
चिराग उस महफ़िल में जलाये जाते है जहाँ तू नहीं होता ,
तेरी मौजूदगी में इन टिमटिमाते चिरागों का क्या काम .......मधु
उस की आमद ने हमें इतना दीवाना सा बना दिया है कि,
उस ने पूछा भी ना था हाल हमारा , और हमने बयां कर दिया ......मधु
अतीत के झोंके से बिखर गयी आज ,कितनी ही यादें मेरे घर आँगन में ,
कुछ मुरझाई सी,कुछ हँसती सी,कुछ रोती ,कुछ शरमाई कुछ घबराई सी ....मधु
वो एक चिठ्ठी , जिस पर गिरे थे कुछ आंसू मेरे और धुंधला गयी थी लिखावट,
आज जब आँखें धुंधला गयी है तो उस चिठ्टी के हर्फ़ साफ़ नजर आने लगे है ...मधु
उस कि उम्मीद पर हम भी खरे उतरते अगर उसने ,
फरिश्तों के तराजू पर हमें.......ना तोला होता .......मधु
सूरज की रौशनी पर ही, दम भरने वालों में से नहीं हैं हम,
दीये को सूरज बना कर ना जाने कितनी रातें काटी हैं हमने ........मधु
मेरे उसूलों की चादर तले आज भी एक बिलखता दिल है ,
जंग जब भी हुई उसूलों से , हर बार मेरा दिल हारा है .........मधु
तेरे घर तक जाने वाली सड़क मौला! ,मेरे दिल से होकर गुजरती है ,
जब भी जाओ घर अपने ,तो कुछ देर मेरे दिल में ठहर कर जाना ......मधु
गर तुझ से नहीं बनता बदलना , किस्मत की लकीरों का ,
तो कुछ घडी के लिए मालिक!, अपनी कलम तू मुझे दे दे ......मधु
ख़्वाबों पर बस नहीं है हमारा ,इसलिए नींद से भी हम घबराते हैं ,
जिन मज़मून से बचना चाहते हैं हम, वो ही ख्वाबों में चले आते हैं ....मधु
उगता है एक ख्वाब कभी कभी ऐसा भी मेरी आँखों में ,
तोड़ कर सब दीवारें ये दुनिया एक बड़ा सा घर बन गयी है ......मधु
रोज बनाता है खिलौने तू, और खुद तोड़ भी देता है उन्हें शाम ढले ,
हमने बचपन के खिलौनों को आज तक कलेजे से लगा कर रखा है ......मधु
मेरे मौला !एक नन्ही सी लौ दीये की मेरी इन आँखों में भर दे ,
कि दुनिया के इन अंधेरों में ,मैं कुछ पल उजाले को भी जी सकूं ......मधु
इन ख़्वाबों का क्या है बंद आँखों में उतर ही आते है ,
खुली आँखों से देखे ख्वाब की, ताबीर गज़ब होती है .......मधु
लिए मन्नतों का टोकरा,मैं निकली थी घर से अपने,
तेरे दर तक आते आते या खुदा ! , न मन्नत रही न मैं....मधु
बुर्जुगों के नक़्शे कदम पर चलने की हसरत तो है हमको ,
पर वक्त की ये नयी हवा तो उन के निशां ही मिटाए जाती है....मधु
उस की रहमत ,उस के करम का था असर इतना ,
कि मैं धूल थी , फिर भी पहाड़ पर जा पहुची |......मधु गजाधर
मेरा जिक्र न करना कहीं ,मेरा नाम ना लेना कभी..ये गुजारिश थी उस की ,
हुआ जिक्र-ए-वफ़ा महफ़िल में , और उस का नाम होठों पर आ ही गया ....मधु
मैंने रोका......... बहुत रोका फिर भी ना जाने क्यों
तेरा जिक्र हुआ महफ़िल में ,मुझे सिसकी आ ही गयी ....मधु
उस की उम्मीदें ,उस की कोशिशें उस की इबादत रंग लायी आखिर,
और खुदा ने उस का मन पसंद खिलौना उस के हाथ में थमा दिया....madhu
यूं तो कहने को बड़े तनहा थे दिन और तनहा थी रातें ,
उस तन्हाई का ये आलम कि दिल में बड़ा तूफ़ान सा था ......मधु
उफ़ !........उस की ताकत पर कितना भरोसा था मुझे ,
मैं गिर गयी, टूट गयी ,बिखर गयी मुझे अहसास ना था ....मधु
हमें भटकाने के लिए,क्या क्या खेल निराले बनाए हैं दुनिया में तूने, ,
तू भटकाता है..हम भटकते हैं, ये रज़ा तेरी है तो सजा हम को क्यों ......मधु
वो कुछ बातें जो दफन कर दी थी हमने ,अपने अन्दर बरसों पहले,
आज जब खोद कर निकाला तो...उफ़ ! आज भी तरो ताज़ा निकली .........म
एक पल की मुलाक़ात में हमने चुपके से चुरा ली थी वो खुशबू तेरी ,
और गलत फहमी में शहर के हर फूल ने हमें कटघरे में खड़ा कर दिया ......मधु
गर चिता टटोलो तो राख ,और कब्र खोदो तो निकलती हैं सूखी हड्डियाँ ,
दफनाई यादें क्यों, जब भी खोदो या टटोलो तो तरो ताज़ा निकलती हैं ?....मधु
पल पल बढती इस जिंदगी पर इतना नाज़ है हमें ,
कि पल पल घटती उम्र का कोई खौफ ही नहीं होता .......मधु
जिंदगी नामे के साथ जुडी थी किस्मत की एक ऐसी जंजीर ,
जिस में बंधे रह कर भी हमने अपनी सोच को आजाद रखा ......मधु
वो चंद पन्ने जिंदगी की किताब के ,जिन्हें मोड़ कर रख दिया था कभी हमने ,
आँखें तो नम हुई आज जब पढ़ा उन को ,पर बार बार पढने को दिल हो आया ......मधु
उस को बुलाने की कोई खास जद्दोजहद न करनी पड़ी हमको ,
बस एक आखिरी सांस ली हमने , या खुदा ! वो दौड़ा चला आया ......मधु
चारों और सागर से घिरी ,मैं घबरा कर खुद से ये भी पूछती हूँ ,
उफ़! गर प्यास लगे तो ये खारा पानी भला कैसे पिया जाएगा ?.....मधु
ये वक्त भी उन के हाथों की कठपुतली बन जाता है ,
जिन्हें पानी पर चलना और हवा में तैरना आता है .......मधु
रात के सन्नाटे में मेरी आत्मा कई बार मुझे यूं शर्मिंदा करती है ,
अरे ! कोहिनूर सा एक और अनमोल दिन तूने व्यर्थ गँवा दिया .....मधु
ना मुझे 'मुहोब्बत'पर लिखना है ना मुझे 'वफ़ा 'पर लिखना है ,
खो गए हैं ये किरदार ना जाने कब से ,पहले तो इन्हें ढूंढना है ......मधु
अँधेरे से लड़ने के लिए एक दीया ही काफी है ,
आह ! कोई कभी आये ,और वो दीया जलाए तो.....मधु
जानते हैं सारी तलाश ख़त्म हो जाती हैं, तुझ तक पहुच कर ,
काश ! कोई इतना बता दे कि आखिर हम तुझे तलाशें कहाँ .....मधु
देना बस एक कोना धरती, जहाँ टिक सकें कदम मेरे, डगमगाए बिना
और बस एक कोना आकाश जिसे छू सकूं मैं अपनी उँगलियों से .....मधु
जो मिल ना सका तुम्हें ,उस के लिए इतना क्यों तड़पते हो दोस्त ,
होता तुम्हारा तो इतनी दुआओं के बाद तुम्हें मिल ही गया होता ....मधु
बासी मुरझाये रिश्तों को 'आह' की नमी से सींच लेना ,
मुरझा कर सूखने, बिखरने में ज्यादा वक्त नहीं लगता ......मधु
दो गज जमीन की जरुरत तो मेरी मौत के बाद होगी ,
आज तो बस एक कन्धा ही सर रखने को मिल जाता .......मधु
तू अज़र है , अमर है , अविनाशी है , स्रष्टि का मालिक है ,
बना कर 'कांच 'सा नाजुक अपनी ही संतान को ,तू राजी है ?....मधु
लिखी है एक अर्जी ,जो तुझ तक पहचानी थी मौला,!
कहाँ है तू ?........तेरे हर पते से तो वो बैरंग लौट आती है ,....मधु
क़ुबूल करती हूँ कि मेरे ऐतबार में कुछ उतार चढाव होता है ,
पर ये तो तेरे मौसम में, चाँद सूरज में बादलों में भी होता है .......मधु
या रब ! इस जिंदगी को तू ,कुछ सुलझी हुई कर दे ,
तुझ से ना बन सके तो , किसी और का पता दे दे .......मधु
बाद मुद्दत के ये सोच कर ,आज खुद पर तरस आया है ,
वो बेबफा था और फिर भी हम उसे याद किये जाते हैं .....मधु
एक इशारा ही काफी था तेरा ,तेरी इस दुनिया में मालिक ! ,
तू कोशिश तो करता दुनिया के दर्दो-ओ-गम दूर करने की.......मधु
उफ़! ऐ कलम मेरी , रुक जा ,ठहर जा ,देख वो पढने वाला सो गया है ,
कितना ही अच्छा लिख ले , सोते को जगाने की ताकत नहीं है तुझ में .....मधु
पाले हैं दिलों में वैमनस्य के, पंछी जो ढेर से हमने ,
चलो आज दिल खोल कर उन्हें कहीं दूर उड़ा आयें .....मधु
हौसलों ने मेरे उड़ने की वो ताकत अता कर दी है कि ,
"उफ़ पंख नहीं है " ये सोच कर अब हम मायूस नहीं होते ......मधु
कतरा कतरा होकर यूं ही बह जाएँ ,ये मुमकिन नहीं है ,
हर एक कतरे में अपने हम , दरिया का वजूद रखते हैं .....मधु
ना तो मैं जानू चयन शब्दों का ,ना जानू कोई कला कलम की ,
मन में उपजे भावों को मैंने ........... बस तुम तक पहुँचाया है ......मधु
बहुत सी यादों को , बातों को , कुछ घड़ियों को ,मुलाकातों को पिरो कर ,
जो हार बनाया था कभी हमने , आज भी ताजा है ,खुशबू से सराबोर है ......मधु
हमारी बेपनाहं मुहोब्बत का राज़ बस इतना ही है यारो !,
ना वो कुछ कहता है कभी और ना हम कुछ कहते हैं कभी .......मधु
ना कोई ताम झाम न कोई माल असबाब ना कोई पहचान है मेरी ,
मुफलिसी का मारा हूँ मैं ,मेरे कटोरे में थोडा सा 'अपनापन ' डाल दे ......मधु
किस किस गिले शिकवे का , हम क्या क्या हिसाब देते ,
ना जखीरा-ए-अलफ़ाज़ थे, और ना वो सुनने को राजी था .......मधु
दिल-ओ-दिमाग को हमारे, गुनाहों के खौफ से यूं भर दिया गया है
अपनी 'मुहब्बत' को क़ुबूल करना भी हमें अब गुनाह नज़र आता है ......मधु
एक पुरानी याद का हल्का सा कोना पकड़ कर खींचा था हमने
उफ़ ! कितनी और यादें भढभढा कर बिखर गयी मेरे चारों और .......मधु
ना कभी मंदिर में गए और ना कभी मस्जिद में गए हम ,
हाँ ! तेरे बन्दों में बहुत बार, तेरा दीदार जरूर किया है ......मधु
नहीं चाह किसी मोक्ष की मुझ को ,और ना चाहिए निर्वाण ,
अपनी धरती और अपने लोगों में ,बस बार बार मुझे आना है ....मधु
कफस से निकलने की बात तो कभी आई ही नहीं जहन में ,
सोचा जरूर कि काश वो भी होता इस कफस में साथ हमारे .....मधु
उफ़ ! जिसे हम बरसों से समझते थे "भुलाने की तरकीब",
अब जाना कि वो तो वो तो "याद रखने" का एक बहाना था .....मधु
नदियाँ जब जाकर मिलती हैं समुन्द्र में और खो देती हैं अपना अस्तित्व ,
वो उन कि कमजोरी नहीं , समुन्द्र को जिलाय रखने की एक आस है .......मधु
बहुत मुश्किल से सीखा था हमने ,पानी पर लिखना तेरा नाम ,
उसे लहरों से बचाया तो.......... सूरज ने सुखा डाला .....मधु
एक उम्र गुजर जाने के बाद ही ये जाना हमने
कि जिन्दगी सब कुछ है.सिर्फ मुहोब्बत के सिवाय .....मधु
जिसे हर शाम अँधेरे ने ठगा है वो सूरज ,हर सुबहफिर से उभर आता है ,
मेरी जिन्दगी के हर उतार चढ़ाव में , मुझे एक हौसला सा दिए जाता है .....मधु
याददाश्त को पुख्ता करने में सारी दुनिया लगी है ,
तुम से बन सके तो तुम हमें 'भूलने' की दवा बता दो ........मधु
उफ़ ! बाद मेरे मरने के भी वो हालात ना बन पाए कभी ,
कि वो खोलता दराज.....और मेरे ख़त उस के हाथ लगते .....मधु
बरसों बाद टटोल कर वो पोटली निकाली है ,यादों की गठरी से
जिस में बंधा रखा है कब से एक वो अल्फाज ,लिखा था तूने कभी
और जिसे खोल कर पढने की हम आज तक ,हिम्मत ना जुटा पाए ,
उस पोटली को खोलते बंद करते उम्र गुजर गयी, दुनिया बदल गयी ....मधु
औरत की अपनी ही बोई कुछ ऐसी दुशवारियाँ है जिंदगी में ,
जो अपनी खार और हसद से अपनी ही कौम को तबाह करती है .......मधु
नींद ने तो हर कोशिश की थी मेरी आँखों में समाने की ,
खुली आँखों से देखे ख्वाब के चस्के ने ये होने ना दिया ......मधु
तेरी दुनिया में रह कर तुझे ही भूला जाना ,ये खता है माना मैंने ,
ना तूने इतने अच्छे लोग बनाए होते और ना हम तुझे भूले होते ....मधु
सुनहरी जिंदगियों को दहशतगर्दी की स्याही से रंगने वाले दरिंदों ,
लानत है तुम्हारे मज़हब पर , जो तुम्हें इंसान ना बना सका ......मधु
कितनी बातों का मुझे करना है अदा ,शुक्रिया तेरा.
कहाँ से शुरू करूं और कहाँ ख़तम, इसी गफलत में हूँ ......मधु
सुकून के कुछ पैबंद लगाने की कोशिश की है ,दर्द की चादर पर
उफ़ ! एक तरफ से रफू करते है तो दूसरी तरफ से उधड़ जाते है ......मधु
अरे !तकदीर के रोने तो वो रोते हैं जिन के हाथ में कलम नहीं होती ,
उठा कलम और अपनी तकदीर खुद लिखने के इल्म को हासिल कर ....मधु
'तेरे दर्द का न हो इल्म मुझे' ये तो मुमकिन नहीं है ,
बन सकूं मैं दर्द-ए-दवा ,ये तो मेरी औकात नहीं है ....मधु
खैरात में मिले चंद दिन चंद रातों ने इतना बदगुमाँ कर दिया है मुझे कि,
चाँद पर घर बनाने का ,सूरज को बाहों में भर लेने का ख्वाब सा देखने लगी हूँ ......मधु
तेरी रौशनी से भर दिया है ,सूरज की किरणों ने मेरे जिस्म को
एक और सुबह देख पाने के लिए ,तेरा शुक्रिया ,तेरा शुक्रिया ..........मधु
आन ,बान, और शान को लेकर बड़े बेखौफ से उड़ रहे थे हम ,
मौत के मंज़र ने झकझोर कर हमें, फिर से जमीं पर ला पटका ....मधु
उफ़ ! आँखें बंद करूं तब भी तू मेरे सामने आ जाता है ,
या अल्लाह ! तू बाहर रहता है या कहीं भीतर मेरे ?......मधु
अरे!गहरे समुन्द्र में डूबने से हम नहीं डरते ,
किसी के प्यार में डूबने का तर्जुबा है हमें ........मधु
कुछ ऐसी खाली खाली सी बातें थी ,
कि तेरा क्या जिक्र आया,भर सी गयीं ......मधु
तन के वातायन से मन का पंछी झांक कर बाहर देखता है '
उफ़!जो भीतर इतने अपने लगते है ,बाहर कितने अजनबी हैं .....मधु
जहाँ एक छत के नीचे भी आज रिश्ते जब दांव पर लगे हों
आसमान पर रहने वाले! मैंने तुझ से नाता बनाये रखा है .....मधु
मुझ से बढ़ कर इस दुनिया में तेरा आबिद* और कौन होगा मालिक !
कि हर गम को अपनी किस्मत माना ,और हर ख़ुशी को तेरी महरबानी .......मधु
हसद, फरेब ,जिना ,और गुरूर से एक मज़हब नया उतर कर आया है ,
गर तुम इन में शामिल नहीं हो तो......... उफ़ ! तुम मज़हबी नहीं हो ...मधु
वो (खुदा) मुझ से खफा है मगर फिर भी यूं लगता है .
वो मेरे अशआरों को पढता है और बार बार पढता है ......मधु
मालिक !अगर तूने ना चाहा होती तो, तेरी दुनिया कभी नहीं बंटती ,
तुझे ही ना जाने क्यों इतने तरीकों से ,इबादत का शौक चर्राया था ....मधु
मंझधार में पहुचे तो यकायक काँप कर रह गए हम,
बेध्यानी में सफ़र शुरू किया था हमने कागज की नाव पर .....मधु
कुछ ख़्वाबों की गठरी लिए नींद हर रात मेरे घर पर चली आती है ,
उफ़ ! "कहाँ समायंगे ये ख्वाब? ' सोच कर मैं नींद को ही लौटा देती हूँ ....मधु
तूने अपने शिकवों की दुनिया इतनी फैला ली है दोस्त !
कि उस में मेरा आना या ना आना, बस ग़ुम हो जाना है .....मधु
पल भर में चटक जाए ,टूट जाय ,बिखर जाए ये कांच सा नाजुक दिन ,
पल भर में चटक जाए ,टूट जाय ,बिखर जाए ये कांच सा नाजुक दिल ........मधु
ये सच है मालिक की मैं तेरी इबादत पर खरी नहीं उतरती ,
तू बस एक नज़र, इंसानियत से मेरी मुहब्बत तो देख.....मधु
जिस शिद्दत से मैंने तेरी इबादत की है मौला ! ,
तू अगर मिल भी जाए तो बड़ी बात ना होगी ........मधु
बस इसी एक तलाश में उम्र सारी तमाम हुई अपनी
कि इंसान में इंसानियत को ही खोजते रहे हम ....मधु
या खुदा ! मेरी कलम में तू वो शफा भर दे ,
जब भी ख़त लिखू तुझे , तू दौड़ा चला आये .......मधु
ये कैसी तेरी खुदाई है , और ये कैसा तेरा इन्साफ है मौला
जो तुझ से मुहोब्बत करते है वो सब की जहालत सहते हैं ........मधु
मेरे हौसलों ने बुलंदियों को कुछ इस तरह से हवा दी है ,
कि नाकामियाबियों के शोले अब राख बन चुके हैं .......मधु
हम है या ना हैं उस कि जिन्दगी में ,उसे फर्क नहीं पड़ता ,
उसे तो रोज नयी भीड़ इकठ्ठा करने का इल्म आता है ....मधु
उस को ये अरमान है कि हम कभी देते आवाज उसको ,
हम तो देते आवाज गर ,वो इतनी आवाजों में ना घिरा होता ....मधु
मानती हूँ कि किसी के चले जाने से जिंदगी रुक नहीं जाती ,
मगर ये भी सच है कि वो जिन्दगी 'फिर जिंदगी नहीं रहती "....मधु
उजड़े हुए दयारों को तो फिर से बसाया है बहुत बार इसने ,
एक अपना ही उजड़ा दिल न कभी , फिर से बसा सका इंसान......मधु
अपनी तख्दीर का गिला- शिकवा मैं तुझ से नहीं करूंगी मालिक ,
खुद अपनी तकदीर लिखने की , तू मुझे बस कूवत फरमा दे ....मधु
'रात' की कहानी सुन कर तो मैं काँप सी गयी हूँ ,
क्या क्या 'जुल्म' बेचारी 'रात' पर ढाए 'जाते' हैं ...मधु
संकल्पों और विकल्पों के बीच ,
डूबती ,उतराती मैं
किनारे पर आकर भी ,
संशय में घिरी हूँ ,
क्या यही मेरा किनारा है ?....मधु
मैं सोता था तब भी मेरा दिल जागा किया ,
ख्वाब में ही सही, दिल-ए-जज्बात बयां करने को ...मधु
बाद मेरी मौत के रिश्तेदार रहे सिर्फ
दरवाजे तक, शमशान तक और फातिहा तक
मालिक ! एक बस तू ही है कि जिसने
मेरा साथ निभाया है क़यामत तक ....मधु
आज एक और सुबह तूने मेरी झोली में डाल तो दी है मौला!
हर लम्हें को तेरे ही मुताबिक गुजारूं ,ये क़ाबलियत भी दे दे ......मधु
बारहा मुझे औरत के किरदार(चरित्र) पर हैरानी हुई है ,
खुद को मिटाने वाले हाथों को सहलाने में लगी है ....मधु
तेरी दौलत से तो तेरे अपनों में ही खिचेंगे खंज़र ,
'संस्कृति' मेरी दौलत जो नयी कौम को रौशनी देगी ....मधु
उजाले से चकाचौंध होकर इतना बदगुमा भी न हो ए दोस्त !
शाम ढलते ही ये उजाला अंधेरों में बदल जाता है ......मधु
मौला तेरे इबादत से रूहानी सुकून तो मिल जाता है मगर,
फकत रूहानी सुकून से तेरी दुनिया में काम नहीं चलता .......मधु
इधर मंदिर है उधर मस्जिद है और मैं बीच में खड़ी हूँ ,
तेरी ही दुनिया में ,तेरा ही बटवारा ये मुझे मंजूर नहीं ......मधु
आज उम्मीद ने मेरी बांह थाम कर कहा मुझ से ,
याद रख इस दुनिया में नाउम्मीद कुछ भी नहीं है .....मधु
ये किन की तोहमतों से घबरा कर तूने सर झुका लिया बन्दे ,
वो जिन के अपने सिरों पर तोहमतों की पगड़ियाँ बंधी हैं .....मधु
इन दीवारों से फुसफुसा कर बहुत बार हमने पूछा है ,
क्या पहले भी हम सी , कोई दास्ताँ गुजरी है तुम्हारेभीतर ......मधु
वो रास्ते जो कभी तुझ तक, पहुचाने वाले थे मुझ को ,
उन रास्तों ने अपना अब ,रास्ता ही बदल दिया है .....मधु
उफ़ ! इन चिरागों ने भी इंसानों का चलन सीख लिया है ,
कहीं कोई जल रहा है और कहीं कोई बुझ रहा है .....मधु
भेज कर पाती अब पछतावा सा हो रहा है मुझे ,
नाम तो लिखा ही नहीं ,भला कैसे पहचानेगा वो....मधु
लकीरों पर थमी जिंदगी को हम बदलें तो कुछ बात बने ,
जो जम से गए हैं अहसास, वो पिघलें तो कुछ बात बने ......मधु
मैं पूछती तो हूँ तुझ से मगर जवाब के लिए नहीं,
क्यों बनायी तूने दुनिया और अब क्यों मिटा रहा है ?......मधु
शाम तो हर मानिंद ढल जाती है , ढल ही जायेगी ,
इन्तजार तो सुबह का जानलेवा है ....मधु
यूं तो और भी बहुत से लोग हैं मांगने वालों में ,
मुझे से भी आगे तेरे दर पर मौला,
मैं इन्तजार कर लूंगी तू बस मुझे ,
सब्र की तौफीक और मांगने का हक़ अता कर दे ........मधु
हर रात( भौतिकता) के घिर आने पर मैं बहुत परेशान सी हो उठती हूँ,
वो (ईश्वर)आया तो भला इस अँधेरे (अज्ञानता)में उसे पह्चानूगी कैसे .....मधु
औरत की तौहीन करने की कभी हिमाकत भी ना करना बन्दे,
अरे बदगुमा ! ये जिस्म तेरा औरत की कोख में ही बना है ......मधु
खुद्दारी का लिबास अब फैशनपरस्ती में ही ना रहा ,
खानदानी लोगों के साथ खानदानी तहजीब भी चली गयी ....मधु
वो जरूर किसी और के हिस्से की धूप थी, जो चली आई थी मेरे आँगन में ,
ना उस में मुझे अपनी परछाईं नज़र आई और ना चकाचौंध हुई आँखे मेरी ......मधु
उफ़ ! क्या लिखूं , कैसे लिखूं , किस को लिखूं , क्योंकर लिखूं,
शब्द बंध गए हैं मेरे और ........'.कलम कहीं रहन रखी गयी है' ......मधु
जब तलक दो झुर्रियों भरे हाथ दुआएं लिए तेरे सर पर हैं,
जिंदगी की कोई तकलीफ तेरे माथे पर सिलवटें ला नहीं सकतीं ....मधु
बात टूटने से , रिश्तों के सिमटने , से जिन्दगी कहीं रुक नहीं जाती ,
न्यामतें तो उस की और भी हैं बहुत .......बिखरी हुई तेरे चारों ओर .....मधु
जो कुछ मिल न सका हमको, उसे तो छोड़ आये है हम ,
किसी और को मिल जाए बस इसी कोशिश में लगे हैं हम ........मधु
रिश्तों के टूटने का सबब फकत इतना ही था दोस्तों ,
कि ना उसने गुरूर अपना छोड़ा , ना हमने गुरूर अपना छोड़ा ....मधु
ताल्लुक टूट जाए तो कोई आवाज नहीं हुआ करती दोस्तों !
ये वो शै है जो चुपचाप जिया और चुपचाप मरा करती है .......मधु
मेरा गिला मेरा शिकवा किसी इंसान से नहीं बस खुदा से है दोस्तों!
बना कर ये फरेबी दुनिया, उलझा कर हमें, वो गुहह्गार ठहराता है .......मधु
एक गहना था 'जमीर ' का उसे आज बेच आये हैं हम
चलो अब कुछ खोने का कोई खौफ ही नहीं रहा हमको....मधु
हाय रे अभिमन्यु !कल जहाँ तू था चक्रव्यूह में , आज वहां हैं हम,
दुशवारियों के घेरे में खुद को कुछ इसी तरह से घिरा पाते हैं हम....मधु
भूलने जाने कि आदत एक पुरानी रवायत है ,
वो खानदानी लोग हैं रवायतों पर चला करते हैं ........मधु
तुझे भूलने की हसरत ने मुझे क्या से क्या बना दिया है,
कि हर आने जाने वाले से मैं अपना नाम-ओ-पता पूछती हूँ .....मधु
ख़्वाबों का क्या है बंद आँखों में उतर ही आते है ,
खुली आँखों से देखे ख्वाब की ताबीर गजब होती है......मधु
मेरे ख्वाबों की ताबीर हो ये
ख्वाब तो
नहीं है
मेरा,
...
मेरे ख्वाबों की दुनिया में मुझे
बस रहने
दे मालिक ...मधु
जो अभी बीता है "कल ",उसे हम भूल जाते हैं ,जो नहीं आया है "कल", उस में हम डूब जाते हैं |
ना बीता कल मेरा है ,ना अगला कल मेरा है ,जो बीत जाए सुकून से, बस वो पल मेरा है ....मधु
शुक्रिया अदा करने की तहजीब मैं निभाऊं भी तो भला कैसे ,
मेरी तो हर सांस पर सौ सौ एहसान है तुम्हारे दुनिया वालो ....मधु
लोग कहते हैं मुफलिसी में साया भी साथ छोड़ देता है ,
मेरी मुफलिसी में तो ढेरों साए मेरे साथ जुड़ आये हैं ....मधु
वो वक्त था कल का , जो काटे नहीं कटता था.... गुजर ही गया ,
ये वक्त है जो आज का रोके नहीं रुकता है.... गुजर जाएगा ....मधु
जो कभी दोस्ती का दम तो भरते थे बहुत दावों के साथ ,
आज हम रूठे हैं तो वो मनाने के रवायत परस्त भी न रहे ....मधु
हालात और जज्बात की कश-म-कश में डूबे हम ,
ऐ जिंदगी !बरसों से तुझे गले लगाना ही भूल गए .......मधु
जिंदगी अपने समुन्द्र में कुछ इस तरह हम को लेकर चली ,
तैर आयीं ऊपर सब कमियां हमारी ,और खूबियाँ डूब गयीं .....मधु
वक्त ने पूछा था बहुत बार ,मैं ठहरूं , मैं रुकूँ, मैं इन्तजार करूं? ,
इतना ऐतबार था तुझ पर कि हमने वक्त पर ऐतबार ना किया ....मधु
पानी पर चलने का हुनर हम भी सीख लेते अगर,
आग के दरिया से यूं मुहोब्बत न हुई होती हम को .....मधु
समझा लेते हैं खुद को हम यूं , रिश्तों के टूट जाने के बाद ,
हम न सही किसी और को उस ने,अपने दिल में जगह तो दी ....मधु
अभी बात नयी है इसलिए तुझे दर्द कुछ ज्यादा है ऐ दिल !
जरा उन से ले नसीहत जिन के हज़ार मर्तबा टूटे हैं दिल ....मधु
जो मैंने खोया है मुझे उस का एहसास तो है लेकिन,
ये मेरी खुद्दारी है जो मुझे फिर से बटोरने नहीं देती ........म
अल्लाह ! ये नौबत अब तो यहाँ तक आ गयी है ,
अजान में भी हमें उस की आवाज सुना करती है ....मधु
या अल्लाह !इतने पाक दिल बिखरे पड़े हैं तेरी दुनिया में ,
और तुझे रहने को मंदिर मस्जिद के सिवा कुछ न मिला ?......मधु
उस की हथेली
की लकीरों में मैंने खुद को तो कभी नहीं देखा ,
वो ना जाने
क्यों वो मेरी हथेली की लकीरों में नज़र आता है ...मधु
ख्वाइशों के इस भंवर में कभी एक खवाइश ऐसी भी थी कि ,
जिसे पूरा करने में कुछ ऐसे डूबे कि भूल ही गए "वो क्या थी "......मधु
किसी की बदनसीबी को तू ,यूं हिकारत की नज़र से ना देख ,
ये वक्त का पहिया है चलते चलते ना जाने कहाँ ठहर जाए ......मधु
मैं उन रिवायतों को बहुत पीछे छोड़ आई हूँ ,
जिन में इन्सान की इबादत होती है |
तुम मुझ से बेरुखी रखना चाहो ,तुम्हारी मर्जी ,
मेरी तो हर सांस मेरे जमीर के साथ होती है .......मधु
तू मंदिर में रहे या मस्जिद में रहे, ये तेरी मर्जी है मालिक ! ,
मुझ से मिलना है तो मेरे दिल में आकर ठहरना होगा ......मधु
भूल जाना किसी अपने को , यूं तो आसां है बहुत ,
खता तो इस दिल की है जो भूलना ही नहीं चाहता ........मधु
या मालिक! गर मुमकिन हो तो कोई ऐसी तदबीर बतादे ,
कि उस के दिल में क्या चल रहा है .मैं दूर बैठे ही जान जाऊं .....मधु
मेरे गुनाहों की सजा देना गर उसूल है तेरा ,
तो गुनाहों को बनाने वाले ,तेरी क्या सजा है .......मधु
उफ़ ! चिरागों ने भी इंसानों का चलन सीख लिया है ,
यूं तो साथ हैं मगर एक जल रहा है एक बुझ रहा है ....मधु
क्या टूट जाता है ऐसा ,किसी टूटे हुए इंसान में ,
कि लाख जोड़ो, मगर बात बनती नहीं नज़र आती ......मधु
मेरे बस में होता तो आस्मां को मैंने रंगों से भर दिया होता,
मेरी धरती के आगे वो बड़ा फीका सा नज़र आता है .......मधु
उस के चेहरे की झुर्रियों में मुझे जिन्दगी की किताब तो नज़र आती है ,
ये मेरी जहालियत है कि उन हर्फों को, मुझे कभी पढना ना आया .....मधु
उस एक रात की आमद का इन्तजार मुझे अब भी है ,
जिस रात कोई हादसा न हो , गुनाह न हो कोई बद्दुआ न हो ....मधु
ये मेरा जिक्र -ए- नाकामियाबी , तेरी हमदर्दी के लिए नहीं ,
मशाल बन कर ये किसी और को नाकमियाबी से बचायगा .....मधु
एक रात और एक बात के दरमियान फर्क है तो सिर्फ इतना ,
कि कैसी भी हो रात ढल जाती है ,और कैसी भी हो बात रह जाती है ....मधु
तेरी दुआओं का असर कुछ इस तरह रहा हम पर कि,
ना धूप में झुलसे और .........ना बारिश में भीगे हम ......मधु
किफ थे कि जज्बात को होठों पे लाना नहीं अच्छा ,
मगर एक ख्वाइश थी कि.... हम बोलें और वो सुने ,....मधु
कुछ मुश्किल न था हमारे लिए, दीवारों को तोड़ देना
वो एक लिहाज़ था दुनिया का जो हम से कभी तोडा न गया ...मधु
किसी तारीफ के लायक यूं तो हम ना थे कभी लेकिन ,
एक तेरे साथ से हमें ,ये फख्र भी हासिल हो गया ....मधु
गयी रात बारिश से आइना धुल कर यूं निखर आया है ,
जो गैर था वो बह गया ,और कोई अपना सा उभर आया है .....मधु
उस की मेहरबानियों का बोझ कुछ इस कदर भारी था ,
कि बीच राह में हमें उस का साथ छोड़ना ही पड़ा ...मधु
बुलंदियों को छूने की चाह में इतना ऊंचा उड़ गए थे हम ,
की ना पंखों की ताब जानी ........ना अपनी औकात जानी
तेरी बेमुर्रवती से चलो ये सबक तो हमने सीख ही लिया,
जो अपना सा दिखे वो अपना हो भी .......ये जरूरी तो नहीं ....मधु
आहिस्ता से तोड़ इन रिश्तों को ,कहीं आवाज ना हो जाए,
वो बात.जो सब से छुपाते आये हैं ....जग जाहिर हो जायेगी......मधु
जाओ तुम्हारा कहा ,सुना सब माफ़ किया हमने ,
आखिर इस गठरी को हम भी कहाँ तक ढोते ......मधु
शेर-ओ-शायरी करना ये तुम्हारी ही मिल्कियत तो नहीं है ,
अरे ! दर्द तो हमारे भी सीने में है और कलम भी हमारे पास है ....मधु
हर सांस पर हमें उस का इतना इन्तजार रहा लेकिन ,
जब वो आया तो हम जनाज़ा- ए- गुसल को जा चुके थे .....मधु
कभी नजदीकियां इतनी थीं की झांकी भी नहीं जाती थीं ,
आज दूरियां इतनी हैं की अब आंकी भी नहीं जाती हैं.....मधु
ईश्वर के नाम.....
जिंदगी में पहली बार कल रात तेरा ख्याल आया,
वो आखिरी हिचकी थी ,और लब पे तेरा नाम आया ....मधु
इसलिए ना की मैंने कभी तुझे देखने की चाहत,
मालिक ! तेरे इंसान में मैंने बहुत बार तुझे देखा है .....मधु
डूबते को तिनके का सहारा ही बहुत है ,
आ...एक तिनका ही देने के लिए आ ....मधु
हौसले, हिम्मत, जज्बा , जूनून सब बिखर गए हैं आज ,
उफ़ !मैंने एक माँ को रोते , बिलखते देखा है ...मधु
का एक शिकवा भगवान् से भी ......
ये सच है मालिक ! कि इस दुनिया में तूने हमें बनाया है ,
मगर ये भी सच है कि इस दुनिया में, हमने तुझे बनाया है .....मधु
यूं आ आ कर तू मेरे दिल के दरवाजों पर दस्तक ना दिया कर,
बरसों से नहीं खुले है ये दरवाजे और अब तो जंग भी लग गयी है ....मधु
बनती हैं और बिगडती हैं तस्वीरें भी तकदीरें भी ,
हम यहाँ नहीं तो वहां पर हैं ,हम वहां नहीं तो यहाँ पर है...मधु
मेरी इबादत से अगर तू मुझे मिल भी जाय तो मेरे मौला!
इतने अपनों को छोड़ कर तुझे पाना मुझे मंजूर नहीं .....मधु
दूर तक तुम साथ दो ,ये गुजारिश तो नहीं है मेरी ,
बस जब तलक मैं चलूँ ......तब तलक तुम चलो .......मधु
इस खुशनुमा मौसम में, एक ग़ज़ल सी उभर आई है ,
और लोग ये कहते है कि ये हुस्न -ए-बयां तेरा है ...मधु
तू अपनी ही बनायी दुनिया में क्यों सब से छिपा बैठा है ,
आ! हमारे बीच जीकर देख ,और अपनी खामियों को पहचान.....मधु
छलक आते हैं आंसू वो हाल ये दिल जो पूछता है हमसे ,
जो उस से कहनी थी वो भी बात बस कहीं दबी रह गयी .....मधु
एक मुद्दत से कासिद ने मेरे दरवाजे पर कोई दस्तक नहीं दी है ,
काश! कोई इतना बता दे मेरी वफ़ा में कहाँ कमी रह गयी ....मधु
मिलने को तो मिल ही जाते हैं बहुत लोग इस दुनिया में ,
किसे अपना कहें, किसे पराया ,इसी कश-म-कश में हैं हम ...मधु
लोग तो बहुत मिले थे हमें इस जिंदगी की राह में,
वक्त तो गुजरता गया और लोग हम से बिछुड़ते रहे ......मधु
तेरी दुनिया में रह कर गर ,तुझ से ही मुखातिब नहीं हूँ मैं
ये उतनी ही खता है तेरी ,ये जितनी कि खता मेरी, .....मधु
मेरी नाकामियों ने कुछ इस तरह से खौफजदा किया है मुझ को ,
कि बारहा मैंने खुद को खुद से छिपाने की भी कोशिश की है....मधु
तखदीरों की लिखावट अब तेरे हाथों की नहीं लगती या खुदा !
ये काम क्या किसी इंसान के हाथों में सौंप दिया है तूने ?
वो तेरे आने की घड़ी हो या घड़ी हो तेरे जाने की ,
दिल मेरा यूं ही बेताब धड़कने लगता है ,
...सिलसिला आंसुओं का कुछ इस तरह बिखरता है ,
सोचती हूँ , दर्द तुझे खोने का है या ये ख़ुशी तुझे पाने की ....madhu
एक मुद्दत के बाद मुझे खुद पे ऐतबार हो पाया है ,
आज भरी भीड़ में उसने एक पल को मुझे देखा है .......मधु
खनक कर टूट गया प्याला ,जिसे सहेजा था बरसों से,
और टूट कर अपने खाली होने की दास्ताँ भी कह गया ....मधु
आज फिर बारिश ने भिगोया है मेरे मन- आँगन को ,
आज फिर मेरे देश की गंध ने सीने से लगाया है मुझे ,
मन पांखी ने झटका है पानी की बूंदों को कुछ इस तरह,,
हर एक बूँद में मुझे आज फिर तेरा चेहरा नज़र आया है .......मधु
आसान नहीं होता अपनी जड़ों से उखड़ कर फिर से जमना ,
आ कर पूर्वजों की धरती पर ,मैंने ये काम कर दिखाया है ....मधु
एक दूसरे की खामीयों को अगर ,नज़रअंदाज कर दिया होता हमने ,
तो ना आज यूं तुम तन्हां होते, ना आज यूं हम तन्हा होते ....मधु
एक नन्ही सी शमा ने जला कर मेरा घर राख कर डाला ,
काश! परवानों के हश्र से मैंने कुछ तो सबक सीखा होता .....मधु
अगर हमारे बस में होता तो ,हमने इतना जरूर किया होता,
हर दर्द से टपका आंसू ,अपने हाथों से पोंछ दिया होता...............मधु
कैसे कैसे रंगों से और कितने फक्र से सजाई होगी ये दुनिया तूने ,
तुझ से बढ़ कर तेरा इंसान आज रंग बदलने में माहिर है ...........मधु
बहुत आसां है तेरे लिए , दुनिया का सब दुःख दर्द मिटा देना,
जो जिसे चाहता है तू उसे, बस उस से मिला दे .............मधु
मुझ से किसी का दुःख दर्द,किसी की तकलीफ देखी नहीं जाती या रब !
या तो तू तकदीर बदल दे उन की ,या फिर मेरी आँखें लेले ..............मधु
दूआओं का उसूल भी क्या खूब सोच कर बनाया है तूने या रब,
खुद के लिए मांगो तो इन्तजार ,किसी और के लिए मांगो तो दुआ कुबूल फ़ौरन ..........madhu
सुना तो ये था की तेरी मर्जी के बिना पत्ता भी नहीं हिलता,
और तेरे इंसान की मर्जी से हजारों पेड़ कट जाते हैं .....................madhu
सिर्फ ऐतबार के ही सीने में दफन होती है मुहोब्बत,
और दुनिया उसे न जाने कहाँ कहाँ,किस किस में ढूंढती है .................madhu
या रब मेरी झोली में बस एक छोटी सी ख़ुशी दाल दे ?
ता जिन्दगी मैं कभी ,किसी आँख में कोई आंसू ना देखू .....मधु
वक्त की चोटों ने मुझे मरहम भी बनाना सिखा दिया है ;
कि अपने दर्द का इलाज दूसरे की खुशियों में ढूंढ लेना .......मधु
रवायतों से भरी इस दुनिया में तूने कभी झांक कर भी देखा है मौला ?
तेरी इबादत भी तो यहाँ बस एक रवायत ही बन कर रह गयी ........मधु
यूं तो आसां है बहुत दुनिया को मुट्ठी में कर लेना,
मगर ये मुट्ठी भर दिल, मेरी मुट्ठी से ही फिसला जाय है..........मधु
अपने जख्मों को सहने की हमें अब आदत सी हो गयी है लेकिन ,
उन की आँख से निकला एक कतरा भी हमें बर्दाश्त नहीं होता .....मधु
फैला के झोली मैंने मांगी थी बस चंद खुशियाँ
तूने तो मेरी औकात से बढ कर मुझे नवाजा है ....मधु
किसी कि दुआएं हैं जो उतर आई हैंमेरे आँगन में सितारे बन कर ,
वर्ना तो सूरज ढलने के बाद से हम अँधेरे में ही जी रहे थे ...मधु
मैं ग़मगीन हूँ कि मेरे पन्नो पर अब हर्फ़ नहीं उभरते ,
वो अपने साथ मेरा वजूद मेरा,तस्सवुर भी ले गया ....मधु
जीने ना दे बेरुखी तेरी,मरने ना दे मुहोब्बत मेरी ,
कशमकश में हैं हम,कि इधर जाएँ या उधर जाएँ ....मधु
जो दुआएं देने के हकदार हैं उन्हें तू बद्दुआ के लिए मजबूर ना कर ,
याद रख कि दूआओं से हजार गुना असर बद्दूआ में होता है ....मधु
तू मुझे क्यों ढूंढ रहा है .....तू मुझे कहाँ ढूंढ रहा है?
तेरी दुनिया में तो मैं, बस दूआओं में छिपा बिठा हूँ ...मधु
अँधेरे में दम तो घुटता है बहुत ,मगर एक तसल्ली भी तो है ,
ना कमियां तेरी नज़र आती हैं ना कमियां मेरी नज़र आती हैं ...मधु
सुनाने से यदि कम होते ये गम तो कोई ग़मगीन ही नहीं होता,
अपने जख्मों को खुद सीने की आदत ही हिम्मत अता करती है ...मधु
सिर्फ़ एक पल ही लगता है किसी को अपना बनाने में ,
लेकिन एक उम्र गुजर जाती है किसी अपने को भुलाने में |...मधु
अपने जीवन साथी के लिए .....
अपनी मुहब्बत से तुमने कुछ इस तरह से संवारा है मुझे ,
कि अब आईना भी देखती हूँ तो मुझे तुम ही नज़र आते हो ...मधु
इश्क मुहोब्बत के अफसानों से भरी इस दुनिया में मेरे मौला
एक मैं हूँ जो सिर्फ तेरी मुहब्बत में पगलाई सी फिरती हूँ ...मधु
"तेरी रहमत से जो मिल जाए ,मेरा सब्र उस में ही है मालिक,
किसी और के आगे कभी हाथ फैलाऊँ , बस ये नौबत न आने देना" ...मधु
तेरे दिल की बात तेरे होठों पे आये या ना आये ,
तेरे दिल की बात मेरे दिल में तो आ ही गयी ......मधु
पहाड़ों से टकराती है तो गूँज बन कर लौट आती है हर आवाज ,
हो अगर जज्बा तो, पहाड़ों को भी चीर देती है वो आवाज ....मधु
लोगों की बेरुखियों से इतना घबरा से गए हैं हम ,
खुद को छू कर अपने ही साए पर इत्मीनान करते है ...मधु
.. .शिकवा दुनिया की तकलीफों का तुझ से मैं भला कैसे करूं
तूने बनायी है ये दुनिया तो कुछ सोच कर ही बनायी होगी ....मधु
कहीं ये मेरी आखरी शब् तो नहीं तेरे पहलू में ,
कि आज तेरे पास आकर भी मेरा दिल उदास है ....मधु
ये आती जाती सांसे भी क्या अजीबो गरीब चीज है,
लौट आई तो जिन्दगी है ,ना लौटी तो खेल मालिक का .....मधु
करोड़ों हैं इंसान इस दुनिया में और करोड़ों हैं ख्वाइशें उन की ,
बता दे मौला ! क्या कभी किसी ने तुझ से, तुझ को भी माँगा है?....मधु
तू खुद ही क्यों समझ नहीं जाती ऐ जिंदगी,तुझ मैं से क्या मांगू ?,
तूने ही तो अपने एक मोड़ पर कभी उसे से मिलवाया था मुझे ...मधु
सिर्फ ये हर्फ़ है तारीक की हर किताब के पन्नो पर ,,
"कहीं कुछ नहीं बदलता , वक्त ही खुद को दोहराता है" ...मधु
चैन की नींद तो मैं सो जाऊं कोई बड़ी बात नहीं है ,
मौला !तू मेरे अपनों के सब दुःख तो मिटा दे पहले ....मधु
दुश्मनाई का सबब बताते इतना थक से गए थे हम की ,
अपने दुश्मनों को हमने अब अपने गले लगा लिया है ....मधु
मैं उन रिवायतों को बहुत पीछे छोड़ आई हूँ ,
जिन में इन्सान की इबादत होती है |
तुम मुझ से बेरुखी रखना चाहो ,तुम्हारी मर्जी ,
मेरी तो हर सांस मेरे जमीर के साथ होती है .......मधु
वो कुछ
बात ही रही होगी जो मुड मुड कर उसने देखा वर्ना ,
यूं रुकना,यूं मुड़ना यूं
देखना उस की आदत में तो शुमार न था ....मधु
उस उदासी का सबब चाह कर भी मैं पूछ नहीं पाता हूँ,
अगर भूले से उस लबों पर मेरा नाम आ गया तो ?......मधु
तन्हाई कि आदत ने हमें कुछ इस कदर बिगाड़ दिया है ,
कि अब अपनी ही साँसों की आवाज हमसे सहन नहीं होती ....मधु
मंजिलें भी वही हैं और रास्ते भी सभी अपने पहचाने से हैं ,
हम ही ना जाने क्यों अब चलते चलते थक से गए हैं ....मधु
मैंने फैलाई तो उस ने भर भी दी झोली मेरी लेकिन ,
छेद थे मेरी झोली में सो जो मिला वो सब बिखर गया ...मधु
मैंने फैलाई तो उस ने भर भी दी झोली मेरी लेकिन ,
छेद थे मेरी झोली में सो जो मिला वो सब बिखर गया ...मधु
सूरज की पहली किरण ने मेरे आँगन में उतर मुझ से फुसफुसा कर कहा,
देख आज तो मैं उतर आई हूँ तेरे आंगन में ,कल का मुझे कोई भरोसा नहीं .....मधु
किस्मत बदल जाती है तो वक्त बदल जाता है और बदलते हैं हालात ,
मगर तू तब भी मेरा मालिक था , और तू अब भी मेरा मालिक है ....मधु
सच बोलने की जुर्रत तो हम कर भी दें मगर ,
तुम सच सुनने की हिम्मत कर भी पाओगे ?....मधु
मालिक ! एक तू ही है जिसने अपना रखा है मुझे अब तक ,
वर्ना तो लोग मिलते रहे , और लोग बिछुडते रहे ...मधु
सारे जहाँ की बरक्कत और खुशियाँ उतर आती हैं तेरे आँगन में ,
जब कहीं कोई हाथ फैला कर तेरे लिए दुआ मांगता है ....मधु
कितने मायूस ,कितने उदास , कितने परेशां नजर आ रहे हो ,
अरे !गर तुम्हें अपने पे ऐतबार नहीं तो मालिक पे तो ऐतबार करो .....मधु
खरीदा और बहुत बटोरा साज ओ सामान तो हमने ,
चलो अब अपना कफ़न भी खरीद कर रख ही डालें ....मधु
रुक जाती, ठहर जाती वो आखरी सांस अगर अपनी तो,
हम उन से लौटने का वायदा कर के ही इस जहाँ जाते .....मधु
दस गुना होकर लौट आएगा तेरा अपना ही किया तुझ तक ,
आज कुछ करने से पहले सोच ले कि तुझे क्या चाहिए ....मधु
ऐ वक्त ! गर मुनासिब हो तो बस इतना ही रहम कीजौ ,
अपने पन्ने से हमारे सब गुनाहों को मिटा दीजौ |.....मधु
एक दीया दिया था ज्ञान का तुझ को ,कि तू अँधेरे में भटक ना जाए ,
उसे अहंकार में बदल कर तूने , अरे खुद को ही जला डाला ....मधु
तेरी सांस सांस पर जिस का अख्तियार है रे बन्दे,
एक एक सांस का तुझ से वो हिसाब जरूर लेगा ....मधु
उजाले से चकाचोंध हो कर इतना बदगुमां भी ना हो मेरे दोस्त ,
शाम होते ही ये दिन का उजाला अंधेरों में बदल जाता है .....मधु
वो दिन लौट के ना आयें तो इसे गम की बात ना समझ ,
आज का दिन कहीं खो ना जाए, इस का ख्याल रखना ....मधु
गुनाहों से बचने को आगाह तो किया था तूने हर बार हमें ,
गुनाहों की लज्ज़त ही कुछ ऐसी थी की हम डूबते ही चले गए ........मधु
याद तो बहुत किया था तुझे ऐ ! मालिक हमने मरते वक्त,
जिंदगी की गहमा गहमी में ही बस तुझे याद न रख सके हम ........मधु
ख्यालों का क्या है वो तो बहते चले आते हैं कभी ऊपर कभी नीचे ,
हकीकत तो ये है की ये जिन्दगी बस ढोने का दूसरा नाम है ....मधु
इक बात थी जो हम में तुम में होनी थी पर हो न सकी कभी ,
उस बात को गठरी में बांधे आज तक फिरते है हम....मधु
तमाम उम्र तो ऐशो आराम से जीते रहे हम,
अब जाते वक्त क्यों हमें पलंग से नीचे उतार दिया (अंतिम घडी में शरीर को जमीन पर लिटा देते हैं) .....मधु
एक आवाज सी आती है दूर से ,जैसे तू बुला रहा है मुझे ,
मैं पागल से भटकती कभी मंदिर में जाती हूँ कभी मस्जिद में जाती हूँ...मधु
मौला तेरी इबादद से रूहानी सुकून तो मिल जाता है मगर,
फकत रूहानी सुकून से तेरी दुनियां में काम नहीं चलता ....मधु
दर्द रिश्तों के टूटने का नहीं है, उन्हें तो टूटना ही था ,
दर्द तो ये है की कितनी बेदर्दी से तोडा उसने ....मधु
मेरी रौशनी पर इतना ऐतबार करने वाले,
तेरा भरम बनाये रखने को मैं दिन रात जल रही हूँ.....मधु
तेरी रहमतों के सदके मुझे बस इतना बता दे मालिक,
कहाँ छुपाया है चैन तूने.. और किस के लिए छुपाया है ....मधु
ये सच है मालिक की मैं तेरी इबादत पर खरी नहीं उतरती ,
तू बस एक नज़र इंसानियत से मेरी मुहब्बत तो देख.....मधु
जज्बातों की दुनिया से बे-आबरू होकर, ये ख़याल आया है
कि काश हम ना होते या ना होते ये जज्बात हमारे....मधु
वो एक छोटी सी बात थी , दिल में आई और कह दी तुम से ,
जानती तो मैं भी थी की बातों के ही अफ़साने बना करते है ....मधु
वक्त की ये गुजारिश है की जो गुजर जाए उसे भुला डालो ,
वक्त ! मुझे ये तो बता क्यों जख्म तू दिए जाता है फिर ....मधु
बहुत आसां है किसी और के बारे में गुफ्तगू करना ,
आसां नहीं मगर खुद को खुद के तराजू में तोलना ....मधु
आज बर्बादी के हालात से गुजरते बहुत बार मैंने सोचा है
काश रोक लिया होता मैंने वक्त के बदलते रुख को ....मधु
उस की ताकत पर इतना ऐतबार था मुझे कि,
मैं गिर गयी ,टूट गयी ,बिखर गयी ,मुझे एहसास ना था .....madhu
इस नयी बदलती दुनिया में नयी तहजीब के साथ चलने के लिए ,
मुश्किल कुछ भी नहीं है बस ईमान का गहना ही बेचना होगा ...मधु
बारहा दिल के दरवाजों से मैंने अपनी यादों को बाहर फेंका तो है ,
अपनी ही कमजोरी से उन्हें फिर से वापिस उठा लाती हूँ मैं ....मधु
ये किन की तोहमतों से घबरा के तूने सर झुका लिया बन्दे,
वो जिन के अपने सिरों पर तोहमतों की पगड़ियाँ बंधी है ...मधु
सुबह का उजियारा दबे पाँव जमी पर उतर आया तो है,
गयी रात के अंधियारे का खौफ अभी तक हावी है .....मधु
वक्त ,हालात सोच और ख्वाइश सब उस की रजा पर कायम है,
मैं ,मैंने और मेरा का जूनून तो हमारा अपना जूनून है ....मधु
....डूब जाना ही गर इश्क की तहजीब हैं तो या रब !
मुझे डूबने में लुत्फ़ की तौफिक फरमा दे....मधु
सुबह की किरण का देवनहार अगर तू है ,
तो रात की स्याही का खुदा क्या कोई और है ?....मधु
...लिए मन्नतों का टोकरा मैं निकली थी अपने घर से ,
तेरे दर तक आते आते या खुदा ! न मन्नत रही न मैं....मधु
....ख़्वाबों का क्या है बंद आँखों में उतर ही आते है ,
खुली आँखों से देखे ख्वाब की ताबीर गजब होती है......मधु
वो रास्ते जो मुझ को तुम तक पहुचाने वाले थे ,
उन रास्तों ने अब अपना रास्ता ही बदल दिया है ....मधु
जिस की इबादत में बनाये हैं मंदिर मस्जिद तूने,
वो खुदा तो बरसों से मेरे दिल में रहा करता है ....मधु
एक वक्त गुजर जाता है और एक वक्त नहीं गुजरता,
तुम क्यों परेशां हो ये तो वक्त का अपना तकाजा है ....मधु
ना उम्मीदी के अंधेरों से घबरा मत ऐ दिल,
उम्मीदों की हवाएं भी चिराग बुझा देती हैं ....मधु
नक़्शे कदम पर चलने की हसरत तो है हमको ,
पर वक्त की ये हवा तो निशां ही मिटाए जाती है....मधु
औरत के दम से है कायनात लोग यूँ कहते तो है फिर भी
इस कायनात में औरत का वजूद तक बर्दाश्त नहीं ....मधु '
गुरूर का पहन लबादा,मैं निकला था खुदा को ढूँढने
न उसने मुझे को पहचाना ...न मैंने उस को पहचाना ....madhu
बिखरना तो जिंदगी में लाजिम है एक दिन ,
बिखरे जो गुलाब की मानिंद तो खुशबुओं में सिमटे रहोगे .....madhu..
वक्त ने तो कहा था मुझे ठहरने को बार बार , ये मेरा ही पागलपन था कि मैं रुक न सकी |
उस की आँख में एक आंसू क्या देख लिया मैंने , अपने ही आंसुओं से मैं सागर सी भर उठी |
रात काली थी,अँधियारा था मगर जीने की चाह में, अपनी ही आग में मैं दीये सी जल उठी |........मधु
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