Madhu's world: 2012/05 - 2012/06 l

5/21/2012

Wednesday, 2 May 2012
शायद
 मेरी सोच ,
 मेरी भावनाएं,
मेरे प्रेम  में सराबोर
होकर

 बहुत गीली हैं ,
आद्र हैं,
नम हैं

और
उसे तो
हर तरह की  नमी से
परहेज़ रहा है
हमेशा
......मधु गजाधर

Thursday, 3 May 2012
सुनो !
तुम्हें याद है
यहाँ कभी
 एक
कच्ची पगडण्डी
हुआ करती थी
 दोनों तरफ
खुशहाली के पेड़ों  से घिरी
जो अनेक
घुमाव लेकर भी
पहुंचती  थी
तुम्हारे दिल तक,
अब  वो
पगडण्डी
पत्थरों से बिछी,
कोलतार से रची
एक  पक्की
लम्बी सड़क बन गयी है
जो बंद है आगे से
और
कहीं नहीं पहुंचती ......मधु गजाधर

बस एक  बात है कि.......
....

by मधु गजाधर on Monday, 14 May 2012 at 00:22 ·



वो बीच समुन्द्र में से भी ,हँसता  हुआ निकल आता है ,
और एक हम है कि कतरा भर ,आंसू में भी डूब जाते हैं |

 चिठ्ठियाँ लिखनी तो उसे ,बरसों से छोड़ ही दी हमने
 कुछ लिखने के जज्बात तो हाँ ,आज भी बहुत होते  हैं


मेरी मानो तो इस मौसम में, दिल की  बात कह दो हमसे
वर्ना इन मौसम का क्या, ये  तो बार बार आते हैं जाते हैं |


स्याही से लिखे पन्नो को यूं तो, बारिश  से बचाना है मुश्किल,
मगर वो  हर्फ़  कभी लिखे थे हमने ,बारिश में भी  नहीं धुल पाते हैं|

ये कोई मामूली बात नहीं है कि ,हमारी जड़ों ने सींचा है हम को  ,
इस  दुनिया में हम पहचान अपनी, इन जड़ों से ही तो बना पाते हैं |......मधु गजाधर