Madhu's world: 2010/06 - 2010/07 l

6/26/2010

मेरे चंद नए अशआर ......

मेरे चंद नए अशआर ......

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1-दर्द रिश्तों के टूटने का नहीं है, उन्हें तो टूटना ही था ,
दर्द तो ये है की कितनी बेदर्दी से तोडा उसने ....मधु

2-वो कुछ बात ही रही होगी जो मुड मुड कर उसने देखा वर्ना ,
यूं रुकना,यूं मुड़ना यूं देखना उस की आदत में तो शुमार न था ....मधु

3-मेरी रौशनी पर इतना ऐतबार करने वाले,
तेरा भरम बनाये रखने को मैं दिन रात जल रही हूँ.....मधु

4-तेरी रहमतों के सदके मुझे बस इतना बता दे मालिक,
कहाँ छुपाया है तूने चैन.. और किस के लिए छुपाया है ....मधु

5-ये सच है मालिक की मैं तेरी इबादत पर खरी नहीं उतरती ,
तू बस एक नज़र इंसानों से मेरी मुहब्बत तो देख.....मधु

6-वो एक छोटी सी बात थी , दिल में आई और कह दी तुम से ,
जानती तो मैं भी थी की बातों के ही अफ़साने बना करते है ....मधु

7-वक्त की ये गुजारिश है की जो गुजर जाए उसे भुला डालो ,
वक्त ! मुझे ये तो बता क्यों जख्म तू दिए जाता है फिर ....मधु

8-बहुत आसां है किसी और के बारे में गुफ्तगू करना ,
आसां नहीं मगर खुद को खुद के तराजू में तोलना ....मधु

9-आज बर्बादी के हालात से गुजरते बहुत बार मैंने सोचा है
काश रोक लिया होता मैंने वक्त के बदलते रुख को ....मधु

10-उस की ताकत पर इतना ऐतबार था मुझे कि,
मैं गिर गयी ,टूट गयी ,बिखर गयी ,मुझे एहसास ना था .....madhu

11-इस नयी दुनिया में नयी तहजीब के साथ चलने के लिए ,
मुश्किल कुछ भी नहीं है बस ईमान का गहना ही बेचना होगा ...मधु

12-बारहा दिल के दरवाजों से मैंने यादों को बाहर फेंका तो है ,
अपनी ही कमजोरी से उन्हें फिर से उठा लाती हूँ मैं ....मधु

13-ये जिद तो नहीं है मेरी इसे बस इल्तजा समझना कि ,
वक्त -ए-जनाज़ा मेरे.. खां साहिब की शहनाई बजवा देना ....मधु

14-ये किन की तोहमतों से घबरा के तूने सर झुका लिया बन्दे,
वो जिन के अपने सिरों पर तोहमतों की पगड़ियाँ बंधी है ...मधु


15-आज उम्मीद ने मेरी बाह थाम कर कहा मुझसे ,
याद रख दुनिया में नाउम्मीद कुछ भी नहीं है ....मधु

16-जिन्दगी यूं तो कोई बात कभी तुझ से छिपाई नहीं मैंने ,
हाँ एक राज है मेरा कि मैं अब तुझ से ऊब सा गया हूँ ....मधु

17-सुबह का उजियारा दबे पाँव जमी पर उतर आया तो है,
गयी रात के अंधियारे का खौफ अभी तक हावी है .....मधु

18-वक्त ,हालात सोच और ख्वाइश सब उस की रजा पर कायम है,
मैं ,मैंने और मेरा का जूनून तो हमारा अपना जूनून है ....मधु

19-.डूब जाना ही गर इश्क की तहजीब हैं तो या रब !
मुझे डूबने में लुत्फ़ की तौफिक फरमा दे....मधु

20-सुबह की किरण का देवनहार अगर तू है ,
तो रात की स्याही का खुदा क्या कोई और है ?....मधु

21-लिए मन्नतों का टोकरा मैं निकली थी अपने घर से ,
तेरे दर तक आते आते या खुदा ! न मन्नत रही न मैं....मधु

22-ख़्वाबों का क्या है बंद आँखों में उतर ही आते है ,
खुली आँखों से देखे ख्वाब की ताबीर गजब होती है......मधु

23-बारहा मुझे औरत के किरदार (चरित्र ) पर हैरानी हुई है

खुद को मिटाने वाले हाथों को सहलाने में लगी है ....मधु

24-वो रास्ते जो मुझ को पहुचाने वाले थे तुम तक ,

उन रास्तों ने अब अपना रास्ता ही बदल दिया है ....मधु

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6/25/2010


कुआँ.... नारी जीवन की अभिव्यक्ति ....

कुआँ
मैं एक कुआँ हूँ,
गहरा कुआँ ,
मेरे अन्दर के अँधेरे में भी शांति है ,
शीतलता है ,...
क्योंकि मैं जल से ओत प्रोत हूँ,
जल...
प्रेम का जल ,
अपनत्व का जल,
ममता का जल,
संस्कार का जल,
श्रधा के समर्पण का जल,
जल ही जल ,
चहुँ और मेरे
जल ही जल,
मेरा अपना एक ठौर है ,
मेरी अपनी एक स्थिरता है ,
मेरी अपनी एक गहराई है,

मैं एक कुआँ हूँ,
संतुष्ट हूँ पूर्णतया अपने में
क्योकि....
मुझे नहीं जाना किसी समुन्द्र के आगोश में ,
नहीं गुजरना किसी बियाबान जंगल,पहाड़ गुफाओं से
मुझे नहीं इन्तजार वर्षा ऋतू का ,
मेरे अन्दर पूर्णता है ,
मेरे अन्दर मेरा अपना संसार है
मेरा प्यार....
मेरे स्वाति नक्षत्र की दुर्लभ बूँद ,
मेरे ही भीतर समाई हुई है ,
और इसी लिए मुझे
कुछ पाने की आस नहीं,
कुछ खोने का भय नहीं


मैं एक कुआँ हूँ...
अपनी चारदीवारी में घिरा मैं,
अपने आधिपत्य से ,
अपनी दुनिया में
लीन,तृप्त, समाहित.,समर्पित ..
हाँ...तुम्हें
जल के लिए कभी इनकार नहीं ,
जितना चाहो, जब चाहो,
पर
एक बार भलीभांति ,
अपने बर्तन में देख लेना
झांक लेना
कहीं कोई छिद्र न हो ,
अपनी भुजाओं का बल आंक लेना ,
जितना दम हो,
बस उतना ही उठाना
वर्ना संभाल नहीं पाओगे ,
बह जाएगा जल,
बिखर जाएगा यत्र, तत्र ,सवर्त्र
ना, ना ....
मुझे कोई अभाव नहीं होगा
क्योंकि,
धरती माँ की छाती से निकला ,
मेरा जल
कभी समाप्त नहीं होगा,
अनवरत....
ये जल निकलता रहेगा...
हाँ
भय तो तुम्हारे लिए है,
कहीं अपनी निर्बलता पर,
कहीं अपनी असफलता पर तुम
निराश न हो जाओ
कहीं लज्जा से न भर उठो
इस लिए
मुझ तक आने से पहले
जान लेना ये सब
भलीभांति,
कि.....
मैं एक कुआँ हूँ.....
हाँ...मैं एक कुआँ हूँ.....मधु गजाधर

6/04/2010

मेरे चंद अशआर

शाम तो हर मानिंद ढल जाती है ढल ही जायेगी..
इन्तजार तो सुबह का जान लेवा है ...मधु

पकी फसल को धर के चिन्गारिओं के बीच ,
मुझ से मेरे हश्र का हाल पूछते हो....मधु..

बिखरना तो जिंदगी में लाजिम है एक दिन ,
बिखरे जो गुलाब की मानिंद तो खुशबुओं में सिमटे रहोगे .... ...मधु.

जिस की इबादत में बनाये हैं मंदिर मस्जिद तूने,
वो खुदा तो बरसों से मेरे दिल में रहा करता है ....मधु

एक वक्त गुजर जाता है और एक वक्त नहीं गुजरता,
ये वक्त का अपना तकाजा है तुम नाहक परेशां हो....मधु

ता उम्र दुआओं का असर कुछ इस तरह रहा ,
ना धूप में झुलसे और ना बारिश में भीगे हम ....मधु

ना उम्मीदी के अंधेरों से ना घबरा दिल,

उम्मीदों की हवाएं भी चिरागों को बुझा देती हैं ....मधु

मेरे ख्वाबों की ताबीर हो ये ख्वाब तो नहीं है मेरा,

मेरे ख्वाबों की दुनिया में मुझे बस रहने दे मालिक ...मधु

नक़्शे कदम पर चलने की हसरत तो है हमको ,

पर वक्त की हवाएं तो निशां ही मिटाए जाती है....मधु

मैं पूछती तो हूँ तुझ से पर जवाब के लिए नहीं,
क्यों बनायीं तूने दुनिया, अब क्यों मिटा रहा है ...मधु

वो रास्ते जो मुझ को पहुचाने वाले थे तुम तक,
उन्ही रास्तों ने अपना रास्ता ही बदल दिया है ....मधु

मुद्दतों बाद किसी ने भूले से याद किया है मुझ को
ये इन्द्रधनुष क्यों आज मेरे आँगन में उतरा आये है

औरत के दम से है कायनात लोग यूँ कहते तो है फिर भी
इस कायनात में औरत का वजूद तक बर्दाश्त नहीं ....मधु '

जन्नत होती है..कहाँ होती है.. कैसी होती है किसे मालूम
दोजख का नज़ारा तो इस दुनिया में बहुत देखा है ...मधु

गुरूर का पहन लबादा,मैं निकला था खुदा को ढूँढने
न उसने मुझे को पहचाना ...न मैंने उस को पहचाना ...मधु




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