Madhu's world: मेरे चंद अशआर l

6/04/2010

मेरे चंद अशआर

शाम तो हर मानिंद ढल जाती है ढल ही जायेगी..
इन्तजार तो सुबह का जान लेवा है ...मधु

पकी फसल को धर के चिन्गारिओं के बीच ,
मुझ से मेरे हश्र का हाल पूछते हो....मधु..

बिखरना तो जिंदगी में लाजिम है एक दिन ,
बिखरे जो गुलाब की मानिंद तो खुशबुओं में सिमटे रहोगे .... ...मधु.

जिस की इबादत में बनाये हैं मंदिर मस्जिद तूने,
वो खुदा तो बरसों से मेरे दिल में रहा करता है ....मधु

एक वक्त गुजर जाता है और एक वक्त नहीं गुजरता,
ये वक्त का अपना तकाजा है तुम नाहक परेशां हो....मधु

ता उम्र दुआओं का असर कुछ इस तरह रहा ,
ना धूप में झुलसे और ना बारिश में भीगे हम ....मधु

ना उम्मीदी के अंधेरों से ना घबरा दिल,

उम्मीदों की हवाएं भी चिरागों को बुझा देती हैं ....मधु

मेरे ख्वाबों की ताबीर हो ये ख्वाब तो नहीं है मेरा,

मेरे ख्वाबों की दुनिया में मुझे बस रहने दे मालिक ...मधु

नक़्शे कदम पर चलने की हसरत तो है हमको ,

पर वक्त की हवाएं तो निशां ही मिटाए जाती है....मधु

मैं पूछती तो हूँ तुझ से पर जवाब के लिए नहीं,
क्यों बनायीं तूने दुनिया, अब क्यों मिटा रहा है ...मधु

वो रास्ते जो मुझ को पहुचाने वाले थे तुम तक,
उन्ही रास्तों ने अपना रास्ता ही बदल दिया है ....मधु

मुद्दतों बाद किसी ने भूले से याद किया है मुझ को
ये इन्द्रधनुष क्यों आज मेरे आँगन में उतरा आये है

औरत के दम से है कायनात लोग यूँ कहते तो है फिर भी
इस कायनात में औरत का वजूद तक बर्दाश्त नहीं ....मधु '

जन्नत होती है..कहाँ होती है.. कैसी होती है किसे मालूम
दोजख का नज़ारा तो इस दुनिया में बहुत देखा है ...मधु

गुरूर का पहन लबादा,मैं निकला था खुदा को ढूँढने
न उसने मुझे को पहचाना ...न मैंने उस को पहचाना ...मधु




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