मेरे चंद अशआर
शाम तो हर मानिंद ढल जाती है ढल ही जायेगी..
इन्तजार तो सुबह का जान लेवा है ...मधु
जिस की इबादत में बनाये हैं मंदिर मस्जिद तूने,
वो खुदा तो बरसों से मेरे दिल में रहा करता है ....मधु
ना उम्मीदी के अंधेरों से ना घबरा ऐ दिल,
उम्मीदों की हवाएं भी चिरागों को बुझा देती हैं ....मधु
मेरे ख्वाबों की ताबीर हो ये ख्वाब तो नहीं है मेरा,
मेरे ख्वाबों की दुनिया में मुझे बस रहने दे मालिक ...मधु
नक़्शे कदम पर चलने की हसरत तो है हमको ,
पर वक्त की हवाएं तो निशां ही मिटाए जाती है....मधु
वो रास्ते जो मुझ को पहुचाने वाले थे तुम तक,
उन्ही रास्तों ने अपना रास्ता ही बदल दिया है ....मधु
मुद्दतों बाद किसी ने भूले से याद किया है मुझ को
ये इन्द्रधनुष क्यों आज मेरे आँगन में उतरा आये है
Labels: शेर ओ गजल
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