मेरे चंद नए अशआर ......
1-दर्द रिश्तों के टूटने का नहीं है, उन्हें तो टूटना ही था ,
दर्द तो ये है की कितनी बेदर्दी से तोडा उसने ....मधु
2-वो कुछ बात ही रही होगी जो मुड मुड कर उसने देखा वर्ना ,
यूं रुकना,यूं मुड़ना यूं देखना उस की आदत में तो शुमार न था ....मधु
3-मेरी रौशनी पर इतना ऐतबार करने वाले,
तेरा भरम बनाये रखने को मैं दिन रात जल रही हूँ.....मधु
4-तेरी रहमतों के सदके मुझे बस इतना बता दे मालिक,
कहाँ छुपाया है तूने चैन.. और किस के लिए छुपाया है ....मधु
5-ये सच है मालिक की मैं तेरी इबादत पर खरी नहीं उतरती ,
तू बस एक नज़र इंसानों से मेरी मुहब्बत तो देख.....मधु
6-वो एक छोटी सी बात थी , दिल में आई और कह दी तुम से ,
जानती तो मैं भी थी की बातों के ही अफ़साने बना करते है ....मधु
7-वक्त की ये गुजारिश है की जो गुजर जाए उसे भुला डालो ,
वक्त ! मुझे ये तो बता क्यों जख्म तू दिए जाता है फिर ....मधु
8-बहुत आसां है किसी और के बारे में गुफ्तगू करना ,
आसां नहीं मगर खुद को खुद के तराजू में तोलना ....मधु
9-आज बर्बादी के हालात से गुजरते बहुत बार मैंने सोचा है
काश रोक लिया होता मैंने वक्त के बदलते रुख को ....मधु
10-उस की ताकत पर इतना ऐतबार था मुझे कि,
मैं गिर गयी ,टूट गयी ,बिखर गयी ,मुझे एहसास ना था .....madhu
11-इस नयी दुनिया में नयी तहजीब के साथ चलने के लिए ,
मुश्किल कुछ भी नहीं है बस ईमान का गहना ही बेचना होगा ...मधु
12-बारहा दिल के दरवाजों से मैंने यादों को बाहर फेंका तो है ,
अपनी ही कमजोरी से उन्हें फिर से उठा लाती हूँ मैं ....मधु
13-ये जिद तो नहीं है मेरी इसे बस इल्तजा समझना कि ,
वक्त -ए-जनाज़ा मेरे.. खां साहिब की शहनाई बजवा देना ....मधु
14-ये किन की तोहमतों से घबरा के तूने सर झुका लिया बन्दे,
वो जिन के अपने सिरों पर तोहमतों की पगड़ियाँ बंधी है ...मधु
15-आज उम्मीद ने मेरी बाह थाम कर कहा मुझसे ,
याद रख दुनिया में नाउम्मीद कुछ भी नहीं है ....मधु
16-जिन्दगी यूं तो कोई बात कभी तुझ से छिपाई नहीं मैंने ,
हाँ एक राज है मेरा कि मैं अब तुझ से ऊब सा गया हूँ ....मधु
17-सुबह का उजियारा दबे पाँव जमी पर उतर आया तो है,
गयी रात के अंधियारे का खौफ अभी तक हावी है .....मधु
18-वक्त ,हालात सोच और ख्वाइश सब उस की रजा पर कायम है,
मैं ,मैंने और मेरा का जूनून तो हमारा अपना जूनून है ....मधु
19-.डूब जाना ही गर इश्क की तहजीब हैं तो या रब !
मुझे डूबने में लुत्फ़ की तौफिक फरमा दे....मधु
20-सुबह की किरण का देवनहार अगर तू है ,
तो रात की स्याही का खुदा क्या कोई और है ?....मधु
21-लिए मन्नतों का टोकरा मैं निकली थी अपने घर से ,
तेरे दर तक आते आते या खुदा ! न मन्नत रही न मैं....मधु
22-ख़्वाबों का क्या है बंद आँखों में उतर ही आते है ,
खुली आँखों से देखे ख्वाब की ताबीर गजब होती है......मधु
23-बारहा मुझे औरत के किरदार (चरित्र ) पर हैरानी हुई है
खुद को मिटाने वाले हाथों को सहलाने में लगी है ....मधु
24-वो रास्ते जो मुझ को पहुचाने वाले थे तुम तक ,
उन रास्तों ने अब अपना रास्ता ही बदल दिया है ....मधु
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