Madhu's world: वक्त,तू बदल जा....... l

5/18/2011

वक्त,तू बदल जा.......

वक्त,तू बदल जा.......
by Madhu Gujadhur on Monday, 28 February 2011 at 09:28

वक्त,

उफ़!

कितना निर्दयी है तू,

पाखंडी है कितना,

तू ना समझ है?

या

करता है

खिलवाड़ ,

धर्म से,

परम्पराओं से

भावनाओं से, रिश्तों से ,

वो एक पल.......

जो बहुत प्यारा पल होता है

जिसे

जीने को जी चाहता है ,

जिसे

बाँध कर रखने को जी चाहता है ,

बस एक ही पल में ,

छीन लेता है तू

वो पल

हम से...

लेकिन.....

जो वक्त....

काटे नहीं कटता ,

जो वक्त

भर देता है

पीड़ा,अश्रु,और अवसाद से ,

आहों से , अपमान से

व्यंग बाणों से,

असफलताओं से,

जो वक्त ,

कर देता है साँसें भी

भारी,

भर देता है कामना

मृत्यु की ,

उस वक्त को....

तू

और भी अधिक

फैला देता है ,

हमारी

हिम्मत से बाहर,

ताकत से बाहर

सहनशक्ति से बाहर

तेरा वो रूप,

तड़पाता है ,

रुलाता है

डरते हैं तेरे इस रूप से हम,

और तू,

तब भी

पिघलता नहीं है कभी,

लौट कर नहीं आता वापिस कभी,

बंधता नहीं है किसी धागे से

टिकता नहीं है जब हम चाहें

सुनता नहीं है आवाज,

देता नहीं है आवाज

क्यों????

मुझे बता ऐ ! वक्त

आखिर क्यों????

आज

बस एक पल के लिए

सुन ले एक विनती ,

एक

कर बद्ध प्रार्थना ,

या

तो तू बदल जा

या फिर तुझे बदल सकें हम

ऐसी शक्ति दे हमें .......मधु

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