वो बीच समुन्द्र में से भी ,हँसता हुआ निकल आता है ,
और एक हम है कि कतरा भर ,आंसू में भी डूब जाते हैं |
चिठ्ठियाँ लिखनी तो उसे ,बरसों से छोड़ ही दी हमने
कुछ लिखने के जज्बात तो हाँ ,आज भी बहुत होते हैं
मेरी मानो तो इस मौसम में, दिल की बात कह दो हमसे
वर्ना इन मौसम का क्या, ये तो बार बार आते हैं जाते हैं |
स्याही से लिखे पन्नो को यूं तो, बारिश से बचाना है मुश्किल,
मगर वो हर्फ़ कभी लिखे थे हमने ,बारिश में भी नहीं धुल पाते हैं|
ये कोई मामूली बात नहीं है कि ,हमारी जड़ों ने सींचा है हम को ,
इस दुनिया में हम पहचान अपनी, इन जड़ों से ही तो बना पाते हैं |......मधु गजाधर