Madhu's world: देश नहीं छुटता l

7/10/2010

देश नहीं छुटता


देश छुट जाता है,
बाहरी रूप से ,
मगर देश नहीं छुटता
अंतर्मन से
क्यों होता है ऐसा
सिर्फ हमारे साथ,
हम भारतीयों के साथ,
किस्मत की हवा जहाँ भी ले जाए हमें ,...
धरती का कोई भी कोना हो ,
कैसे भी लोग हों,कोई भी भाषा हो,
हम कुछ न कुछ कर के ,
छुपा कर, चुरा कर ,दबा कर ,
और कलेजे से लगा कर ,
अपना भारत ,
अपने साथ ले आते है ,
और वो भारत,
कभी हिंदी ,पंजाबी,तमिल,तेलुगु ,गुजराती ,मराठी में
बतियाता है ,
तो कभी,
हींग के तडके में ,
रासम के मसाले में ,
आलू मूली के परांठों में ,
खस्ता कचोरियों में ,
अचार के मसालों में
गंधाता है,
और कभी
आरती के सुर में,
सतनाम के जाप में ,
वैदिक मन्त्रों के कर्ण नाद में ,
छट,करवाचौथ,वट सावित्री,
या अन्नंत चौदस की कथा में
गुंजाता है ,
देश छुट जाता है ,
पर देश नहीं छुटता,
हाँ भारत देश नहीं छुटता..
कभी नहीं छुटता,
शायद इसलिए
की
भारत कोई देश नहीं है ,
भारत कोई जमीन का टुकड़ा नहीं है
भारत भोगोलिक सीमाओं में बंधा
कोई मानचित्र नहीं है ,
भारत तो एक भावना है ,
भारत तो एक आत्मा है ,
भारत तो साँसें है ,
भारत तो प्राण है ,
और इसीलिए
देश छुट जाता है ,
पर देश नहीं छुटता ,
अंतर्मन से ,
हाँ भारत देश नहीं छुटता
कभी नहीं छुटता
और इस देश का वासी
जीवन की अंतिम घडी में भी
बस यही मांगता है
उस मालिक से,
अगला जनम मोहे भारत में ही दीजौ ...मधु

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1 Comments:

At 12 July 2010 at 02:46 , Blogger Rector Kathuria said...

काश देश में रहने वाले भारतियों की भावनाएं भी इसी तरह की होती तो हम इसे सचमुच दिल से महान भी कह पाते और सारे जहाँ से अच्छा भी......!

 

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